डिजिटल डाटा सुरक्षा या सूचना का गला घोंटने की तैयारी? RTI, पत्रकारिता और लोकतंत्र पर मंडरा रहा है खतरा
“यह डेटा प्रोटेक्शन नहीं, भ्रष्टाचार प्रोटेक्शन कानून है।”
देश की राजधानी दिल्ली के प्रेस क्लब में जब ये शब्द RTI कार्यकर्ता निखिल डे ने कहे, तो वहां मौजूद हर किसी ने गहरी चिंता जताई। बात हो रही थी Digital Personal Data Protection Act (DPDP Act) और उससे जुड़े नियमों की, जो धीरे-धीरे सूचना के अधिकार (RTI), पत्रकारिता और नागरिक अधिकारों पर एक व्यापक हमला साबित हो रहे हैं।
आज भारत में लोकतंत्र के सबसे अहम औजार — सूचना, अभिव्यक्ति और जवाबदेही — को कुंद करने का सिलसिला तेज़ होता जा रहा है। RTI कार्यकर्ता, पत्रकार और सामाजिक संगठनों ने एक सुर में इस कानून का विरोध किया है, क्योंकि यह सरकार को तो पूरी छूट देता है, लेकिन आम नागरिक और पत्रकारों पर शिकंजा कसता है।
RTI पर सीधा वार
निखिल डे कहते हैं, “ये कानून RTI को खत्म करने की दिशा में सबसे बड़ा कदम है। ना सिर्फ जानकारी मांगने वाला बल्कि जानकारी देने वाला भी अपराधी बना दिया जाएगा।”
वो आगे जोड़ते हैं —
“130 से अधिक सांसदों ने दस्तखत कर इसका विरोध किया है। RTI कानून के माध्यम से जिन खुलासों ने सत्ता को कटघरे में खड़ा किया — जैसे कि इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाला, मोर्बी ब्रिज हादसा, बिहार के वोटर लिस्ट की गड़बड़ियां — अब वे सब भविष्य में असंभव हो जाएंगे।”
गरीबों की आवाज़ कैसे होगी बंद
RTI से सबसे अधिक लाभ उठाने वाले हैं वंचित समुदाय — पेंशन, राशन, श्रमिक योजनाएं, सरकारी सहायता। अमृता जोहरी, जो भोजन और पेंशन अधिकार आंदोलन से जुड़ी हैं, कहती हैं:
“सरकार जवाब नहीं दे रही, acknowledgment तक नहीं भेज रही। RTI से जो लोगों को राशन, पेंशन, और इलाज मिल रहा था — वो सब बंद हो जाएगा क्योंकि अब डेटा मांगना ‘अपराध’ होगा।”
पत्रकारिता का गला घोंटने की साज़िश
इस कानून में “जर्नलिस्टिक एग्जेम्प्शन” की वह लाइन, जो पहले ड्राफ्ट में थी, हटा दी गई है। इसका अर्थ है कि अब एक पत्रकार के लिए खबर लिखना भी आपराधिक श्रेणी में आ सकता है।
संगीता बरुआ, वरिष्ठ पत्रकार और प्रेस क्लब दिल्ली की सदस्य, बताती हैं:
“पत्रकारिता खत्म करने की पूरी योजना है। अगर हम किसी भ्रष्टाचार या सरकारी लापरवाही पर रिपोर्ट करें, और कोई हमें 250 करोड़ का मुकदमा ठोक दे — तो कौन बोलेगा? कौन लिखेगा?”
सरकार किससे डर रही है?
जिस सूचना से सरकारें जवाबदेह बनती हैं — मौजूदा सत्ता उसे ही खत्म करना चाहती है। RTI से जुड़े फैसलों ने हाल के वर्षों में केंद्र सरकार की तमाम योजनाओं की पोल खोली है — विशेषकर इलेक्टोरल बॉन्ड घोटाले ने।
अब अगर RTI को ही एक अपराध बना दिया जाएगा, तो फिर किसके पास कोई हथियार बचेगा सच्चाई पूछने का?
निष्कर्ष: जवाबदेही से बचना है मकसद
RTI कार्यकर्ता, पत्रकार, और सांसद — सबने कहा है कि यह कानून गोपनीयता की आड़ में लोकतंत्र की हत्या की योजना है। और जब पत्रकारिता, जनता और न्यायपालिका सब चुप हो जाएं, तो फिर सिर्फ सत्ता की आवाज़ बचेगी।
अब सवाल है — क्या यह कानून संसद में रोका जाएगा? क्या देश की जनता सूचना के अधिकार की रक्षा के लिए एकजुट होगी?