August 9, 2025 5:03 pm
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80,000 करोड़ का बिहार घोटाला: कहाँ गया जनता का पैसा?

CAG की 2025 की रिपोर्ट ने बिहार सरकार में 80,000 करोड़ रुपये के खर्च पर सवाल उठाए हैं। बिना UC और DC बिल के खर्च हुई यह राशि घोटाले का बड़ा संकेत देती है। पढ़िए बेबाक भाषा की ग्राउंड रिपोर्ट।

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बिहार एक बार फिर बड़े घोटाले की आग में झुलस रहा है। 25 जुलाई 2025 को भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा बिहार विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में 80,000 करोड़ रुपये के खर्च का कोई हिसाब नहीं है। यह आरोप किसी विपक्षी नेता ने नहीं, बल्कि देश की सबसे बड़ी ऑडिट संस्था ने खुद अपनी आधिकारिक रिपोर्ट में लगाया है।

ये पैसा गया कहाँ?

कैग की रिपोर्ट में साफ तौर पर कहा गया है कि वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान बिहार सरकार ने विभिन्न विभागों को योजनाओं के नाम पर पैसा दिया, लेकिन इन खर्चों का कोई ब्यौरा अब तक नहीं दिया गया है।

  • करीब 70,877 करोड़ रुपये उन योजनाओं पर खर्च हुए, जिनका कोई “यूसी” (Utilization Certificate) नहीं मिला।
  • इसके अलावा, 9,205 करोड़ रुपये ऐसे एडवांस दिये गए, जिनका कोई “डीसी” (Detailed Contingent Bill) नहीं है।

इस तरह कुल मिलाकर 80,000 करोड़ रुपये से अधिक की राशि ऐसी है, जिसका उपयोग कहां और कैसे हुआ, इसका कोई सरकारी प्रमाण उपलब्ध नहीं है।

किन विभागों में खर्च?

रिपोर्ट में जो विभाग सबसे ज्यादा सवालों के घेरे में हैं, उनमें शामिल हैं:

  • पंचायती राज विभाग: ₹28,154 करोड़
  • शिक्षा विभाग: ₹12,624 करोड़
  • शहरी विकास: ₹11,066 करोड़
  • ग्रामीण विकास: ₹7,800 करोड़
  • कृषि विभाग: ₹2,108 करोड़

घोटाला या सिर्फ लापरवाही?

CAG सीधे तौर पर यह नहीं कहता कि घोटाला हुआ है, लेकिन जब किसी भी सरकारी खर्च का कोई हिसाब नहीं हो, तो शक पैदा होना स्वाभाविक है। एक निजी कंपनी अगर इतने पैसों का हिसाब न दे पाए तो उस पर तुरंत आपराधिक मामला दर्ज हो जाए। लेकिन यहां, सरकारें मौन हैं।

वही CAG, वही रिपोर्ट… लेकिन मौन क्यों?

यही CAG संस्था 2010-12 में मनमोहन सरकार के खिलाफ बड़े-बड़े घोटालों – जैसे 2G, कोयला आवंटन, कॉमनवेल्थ गेम्स – को उजागर करने के लिए चर्चा में आई थी। उन्हीं रिपोर्ट्स ने तत्कालीन सरकार की नींव हिला दी थी।

दिल्ली चुनाव से पहले भी आम आदमी पार्टी की सरकार के खिलाफ CAG की कथित “लीक” रिपोर्ट पर खूब राजनीति हुई थी, जबकि वह रिपोर्ट तब तक विधानसभा में पेश भी नहीं हुई थी।

लेकिन इस बार जब 80,000 करोड़ रुपये की रकम का कोई रिकॉर्ड नहीं है, और यह रिपोर्ट बाकायदा विधानसभा के पटल पर रखी गई है — तो न प्रधानमंत्री कुछ बोल रहे हैं, न मीडिया में बहस है, न ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कोई सफाई दे रहे हैं।

घोटाले पर खामोशी क्यों?

इस खामोशी की वजह साफ है — बिहार में अभी BJP और JDU की साझा सरकार है। भ्रष्टाचार, घोटाले और जनधन की लूट अब राजनीतिक चश्मे से देखी जाती है। अगर यही रिपोर्ट किसी विपक्षी शासित राज्य की होती, तो अब तक टीवी डिबेट से लेकर सड़क तक हंगामा मच चुका होता।

यह घोटाला बनेगा चुनावी मुद्दा?

बिहार इस समय वोटर लिस्ट की विशेष पुनरीक्षण प्रक्रिया (SIR) को लेकर भी घिरा हुआ है, लेकिन चुनाव पास आते-आते ये 80,000 करोड़ का घोटाला विपक्ष के लिए एक बड़ा हथियार बन सकता है। सवाल यह है कि क्या जनता भी इस घोटाले को मुद्दा बनाएगी? क्या मीडिया, CAG की इस रिपोर्ट को उतनी ही गंभीरता से लेगा, जितनी पहले लेता था?

मुकुल सरल

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