सिर्फ दिल्ली से 6 महीने में 770 लोगों को किया डिपोर्ट, उठे बड़े सवाल
“मैं भारत का निवासी हूं!”
सीमा पर खड़ा एक व्यक्ति चीख-चीखकर यह बात कह रहा है। उसके चेहरे पर डर, गुस्सा और अपमान की मिलीजुली झलक है। उसका नाम है खैरुल इस्लाम, उम्र 51 साल, जो असम के मोरीगांव के निवासी हैं और एक पूर्व स्कूल शिक्षक। लेकिन आज, वो खुद को बांग्लादेश की सीमा पर खड़ा पाते हैं — निर्वासित, बेघर और बेनाम।
मामला क्या है?
दिल्ली पुलिस ने पिछले 6 महीनों में दावा किया है कि उसने 770 बांग्लादेशी नागरिकों को डिपोर्ट किया है। परंतु इन आंकड़ों के पीछे की असल कहानी कहीं ज़्यादा चौंकाने वाली है — जैसे खैरुल इस्लाम का मामला, जिनका केस सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। फिर भी उन्हें रात के अंधेरे में उनके घर से उठाकर सीधे बांग्लादेश बॉर्डर पर फेंक दिया गया।
इसका खुलासा स्क्रॉल और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्टिंग और बांग्लादेशी पत्रकार के एक वीडियो से हुआ, जिसमें खैरुल बॉर्डर पर खड़े होकर बता रहे हैं कि उन्हें कैसे बिना किसी कानूनी सूचना के BSF द्वारा बांग्लादेश धकेल दिया गया।
ये सब हुआ कैसे?
- 23 मई की रात 11 बजे, खैरुल इस्लाम को उनके घर से असम पुलिस उठा कर मातिया डिटेंशन सेंटर ले गई।
- अगले दिन सुबह, उनके हाथ बांध दिए गए और उन्हें बस में बैठा कर बांग्लादेश की सीमा पर छोड़ दिया गया।
- न तो उनके परिवार को कोई सूचना दी गई, न ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश का सम्मान किया गया जिसमें status quo की बात कही गई थी।
सुप्रीम कोर्ट और “फैंसी स्टोरी” का तर्क
2017 में जब रोहिंग्या शरणार्थियों को भारत से बाहर निकालने के खिलाफ एक याचिका आई थी, तो सुप्रीम कोर्ट ने उसे “फैंसी स्टोरी” कहकर खारिज किया था। आज जबकि सरकार खुद खुले तौर पर बांग्लादेशियों को बिना दस्तावेज़, बिना सुनवाई, बिना किसी प्रक्रिया के देश से बाहर फेंक रही है — क्या अब भी इसे “फैंसी स्टोरी” कहा जाएगा?
किसे निशाना बनाया जा रहा है?
- रोहिंग्या, बांग्लादेशी मुसलमान, और यहां तक कि भारत के ही नागरिक।
- अहमदाबाद में चंदोला झील के किनारे 7000 से ज्यादा घर गिरा दिए गए क्योंकि “शक” था कि वहां बांग्लादेशी रहते हैं।
- दिल्ली, गुजरात, असम जैसे राज्यों में भी इसी पैटर्न पर कार्रवाई हो रही है।
राजनीति और सुरक्षा की आड़?
यह सब हुआ है 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद। पुलिस ने कार्रवाई तेज कर दी है — लेकिन पाकिस्तान से नहीं, बल्कि बांग्लादेशी समुदाय से। क्या ये राष्ट्रवाद की राजनीति है? या धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का खेल?
AIUDF का हस्तक्षेप
ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) ने इस पूरे मामले को लेकर असम के राज्यपाल को पत्र लिखा है। उन्होंने पूछा है कि जब खैरुल इस्लाम का मामला सुप्रीम कोर्ट में चल रहा है, तो उन्हें किस अधिकार से निर्वासित किया गया?
सवाल जो पूछे जाने चाहिए
- क्या किसी भी निर्वासन से पहले बांग्लादेश सरकार को सूची दी गई?
- क्या किसी न्यायिक प्रक्रिया का पालन किया गया?
- क्या नागरिकता और मानवीय अधिकार सिर्फ एक बहस का विषय बनकर रह गए हैं?
निष्कर्ष
यह सिर्फ खैरुल इस्लाम की कहानी नहीं है। यह उन सैकड़ों, शायद हजारों लोगों की कहानी है जो बिना दस्तावेजों के, बिना सुनवाई के, बस “अवैध” करार दे दिए जाते हैं, और एक रात अचानक गायब कर दिए जाते हैं।
सवाल यह है कि क्या हम लोकतंत्र में रह रहे हैं या पुलिसराज में?
और क्या अदालतें इस बार भी इसे “फैंसी स्टोरी” कहकर टाल देंगी?
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