जाति उन्मूलन और आरक्षण को कमजोर कर मनुवाद को बढ़ावा देता संघ
20वीं सदी की शुरुआत में भारत में दलित चेतना ने गति पकड़ी। बाबा साहब अंबेडकर के नेतृत्व में दलितों ने सामाजिक समता और अधिकारों की मांग शुरू की। इसी दौर में कुछ सवर्ण जातियों ने मिलकर एक संगठन की नींव रखी—जिसे हम आज राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के नाम से जानते हैं।
इस संगठन की एक बड़ी चिंता थी—दलितों का उभार।
RSS के गठन के पीछे जो वैचारिक भय था, वह यही था कि यदि दलितों को बराबरी का अधिकार मिला, तो सदियों पुराना जाति आधारित प्रभुत्व खतरे में आ जाएगा।
मनुस्मृति बनाम संविधान
बाबा साहब अंबेडकर ने सार्वजनिक रूप से मनुस्मृति को जलाया।
उनका स्पष्ट तर्क था —
“मनुस्मृति शूद्रों और स्त्रियों की गुलामी का विधान है, हम इसे नहीं मान सकते।”
इसके 30 वर्ष बाद, वही अंबेडकर भारतीय संविधान की ड्राफ्टिंग कमिटी के अध्यक्ष बने। यह ऐतिहासिक घटनाक्रम केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं, पूरे दलित समाज की सामाजिक क्रांति का संकेत था।
21वीं सदी में भी दलित चेतना पर हमला?
आज जब हम 2024-25 की बात करते हैं, तो हमें दिखता है कि:
- दलितों पर अत्याचार बढ़े हैं — खासकर सवर्ण समूहों से जुड़े लोग सत्ता और बहुसंख्यक प्रभुत्व के नाम पर हिंसा कर रहे हैं।
- आरक्षण की नीति को कमजोर किया गया है — आर्थिक आधार पर आरक्षण की बात करके जाति आधारित सामाजिक विषमता को नजरंदाज़ किया गया।
- सरकारी नौकरियों में आरक्षित पद खत्म किए जा रहे हैं — विश्वविद्यालयों में निर्देश जारी कर दिए गए हैं कि खाली आरक्षित पदों को ‘ओपन कैटेगरी’ में समाहित किया जाए।
“गौ माता” और लिंचिंग की राजनीति
RSS और उसके संगठनों ने “गौ रक्षा” को एक भावनात्मक हथियार बनाया है। इसका शिकार केवल मुसलमान ही नहीं, बल्कि दलित भी हुए हैं।
डेटा बताता है कि 2014 से 2019 के बीच लिंचिंग की घटनाओं में मारे गए 100 लोगों में 90 मुसलमान और 10 दलित थे।
कई दलितों को उस समय पीटा गया जब वे मृत जानवरों की खाल उतारने जैसे अपने पारंपरिक काम कर रहे थे।
“सामाजिक समरसता मंच”: एक दिखावटी पहल?
RSS ने दलितों के बीच “सामाजिक समरसता मंच” शुरू किया है, जो कहता है —
“जातियां बनी रहें, बस मेलजोल से रहें।”
यह सोच बिल्कुल अंबेडकर की जाति उन्मूलन की सोच के विरुद्ध है।
अंबेडकर ने कहा था कि जाति केवल मंदिरों या शादी के बहिष्कार तक सीमित नहीं है, यह पूरी सामाजिक संरचना को नियंत्रित करती है।
वोट बैंक नहीं, फुट सोल्जर?
RSS और BJP दलितों को केवल वोट बैंक ही नहीं, बल्कि फुट सोल्जर यानी ज़मीनी लड़ाके की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं।
कई जगहों पर दलितों को मस्जिदों के सामने भड़काया गया, “हिंदू एकता” के नाम पर उन्हें मोहरे की तरह खड़ा किया गया।
क्यों ज़रूरी है इस चेतना का विरोध?
बाबा साहब अंबेडकर ने कहा था:
“भारत का विभाजन हिंदू राष्ट्र की संभावना को जन्म देगा। यह भारत के लिए शोकांतिका होगी।”
आज RSS उसी हिंदू राष्ट्र की दिशा में बढ़ रहा है — जातिगत वर्चस्व, आरक्षण की अवहेलना, और दलित विरोधी नीतियों के ज़रिए।
इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि दलित चेतना को व्यापक किया जाए, सामाजिक आंदोलन खड़े किए जाएं और संविधान के मूल मूल्यों की रक्षा की जाए।
निष्कर्ष:
RSS के हिंदू राष्ट्र का सपना दलितों की बराबरी की लड़ाई के खिलाफ खड़ा होता है।
जहाँ अंबेडकर मनुस्मृति को जलाकर नए भारत का सपना देख रहे थे, वहीं RSS उसी सोच को नए स्वरूप में समाज पर थोपना चाहता है।
इसलिए यह लड़ाई केवल वैचारिक नहीं, भारत के सामाजिक भविष्य की लड़ाई है।