August 8, 2025 11:30 pm
Home » समाज-संस्कृति » गिरफ़्तार दो नन को मिली ज़मानत, क्या है RSS-बजरंग दल की दुश्मनी

गिरफ़्तार दो नन को मिली ज़मानत, क्या है RSS-बजरंग दल की दुश्मनी

ईसाई मिशनरियों पर लगातार हो रहे हमले, धर्मांतरण के नाम पर फैलाई जा रही हिंसा और RSS की वैचारिक भूमिका पर आधारित ग्राउंड रिपोर्ट। पढ़ें पूरी सच्चाई।

धर्मांतरण के नाम पर ईसाई मिशनरियों पर हमला: क्या RSS की विचारधारा हिंसा को बढ़ावा दे रही है?

“धर्मांतरण हो रहा है!” — यह वाक्य जैसे ही सुनाई देता है, कुछ समूहों में उत्तेजना फैल जाती है। हाल ही में छत्तीसगढ़ के दुर्ग स्टेशन पर दो ईसाई नन और तीन महिलाओं को लेकर बजरंग दल ने धर्मांतरण के आरोप में घेर लिया। लेकिन जब तथ्यों की परतें खुलीं, तो सामने आया कि ये महिलाएं अपनी मर्जी से यात्रा कर रही थीं और उनके पालकों की अनुमति भी थी।

लेकिन यह घटना कोई अपवाद नहीं है। भारत में ईसाई मिशनरियों को लंबे समय से धार्मिक कट्टरता का निशाना बनाया जाता रहा है। धर्मांतरण के आरोप केवल बहाना बनते हैं, असल निशाना है अल्पसंख्यक समुदाय और उनकी स्वतंत्र धार्मिक पहचान।

🔥 इतिहास गवाह है: धर्म के नाम पर हिंसा की लकीरें

1995 में इंदौर में रानी मारिया की हत्या और 1999 में ओडिशा के मनोहरपुर में पादरी ग्राहम स्टेन्स और उनके दो बच्चों को जिंदा जलाना इस घृणित हिंसा की शुरुआत भर थे। ग्राहम स्टेन्स, जो कुष्ठरोगियों की सेवा कर रहे थे, को बजरंग दल के कार्यकर्ता दारा सिंह ने जला दिया।

राष्ट्रपति के.आर. नारायणन ने इस कांड को “सभ्यता पर कलंक” बताया था। वाधवा आयोग की रिपोर्ट ने साफ लिखा कि इस हत्या के पीछे RSS और बजरंग दल की सक्रिय भूमिका थी। हालांकि दारा सिंह की फांसी की सजा बाद में आजीवन कारावास में बदल दी गई।

🏚 कंधमाल 2008: ईसाई विरोधी हिंसा की पराकाष्ठा

2008 में ओडिशा के कंधमाल में हुई हिंसा में करीब 100 ईसाइयों की जान चली गई, सैकड़ों चर्च जला दिए गए। वजह? विश्व हिंदू परिषद से जुड़े स्वामी लक्ष्मणानंद की हत्या, जिसे क्रिश्चन विरोध की आग में बदल दिया गया — बावजूद इसके कि हत्या के पीछे माओवादियों का हाथ साबित हुआ।

🕊 गंभीर आरोप, नगण्य सबूत

हर घटना में पैटर्न एक जैसा है — धर्मांतरण का आरोप, स्थानीय बजरंग दल या विहिप की सक्रियता, पुलिस की चुप्पी और राजनीतिक संरक्षण।
ईसाई मिशनरियों को अक्सर प्रार्थना सभाओं, हेल्थ कैंप्स या शिक्षा कार्यक्रमों के दौरान रोका जाता है, उन पर हमले होते हैं, उन्हें गिरफ्तार किया जाता है या क़ानूनी परेशानियों में फंसा दिया जाता है।

📉 तो क्या वाकई हो रहा है ‘धर्मांतरण’?

जनगणना डेटा के अनुसार भारत में ईसाई जनसंख्या 1971 में 2.6% थी, और 2011 में घटकर 2.3% हो गई। यदि व्यापक पैमाने पर धर्मांतरण हो रहा होता, तो क्या यह प्रतिशत कम होता?

भारत में ईसाई धर्म की उपस्थिति कोई नई नहीं है — सेंट थॉमस 52 ईस्वी में केरल आए और पहला चर्च स्थापित किया। तब से ईसाई समुदाय इस देश का हिस्सा रहा है। लेकिन आज भी उन्हें संदिग्ध नज़र से देखा जाता है।

📚 RSS की वैचारिक पृष्ठभूमि

RSS के संस्थापक विचारक एम.एस. गोलवलकर ने ‘We or Our Nationhood Defined’ में मुसलमानों, ईसाइयों और कम्युनिस्टों को “राष्ट्र के आंतरिक शत्रु” बताया था।
यह विचारधारा आज भी जीवित है — हर ईसाई मिशनरी को धर्मांतरण एजेंट मानना, हर प्रार्थना सभा को ‘साजिश’ समझना, हर चर्च को टार्गेट करना।

🔍 सरकार की भूमिका और मीडिया की चुप्पी

2014 के बाद से ईसाइयों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं दोगुनी हो चुकी हैं, लेकिन ये “सब-रडार” घटनाएं हैं — दूरदराज़ इलाकों में होती हैं और मुख्यधारा मीडिया तक नहीं पहुंचतीं।

प्रत्येक हमले के बाद जिम्मेदारी तय करने के बजाय “कथित धर्मांतरण” की जांच होती है।

🛑 नए खतरे: अंतिम संस्कार तक पर पाबंदी

अब तो हालात ये हैं कि कुछ राज्यों में ईसाइयों को कब्रगाहों में शव दफनाने तक की अनुमति नहीं दी जाती। इससे न सिर्फ धार्मिक स्वतंत्रता, बल्कि मानवता पर भी सवाल उठते हैं।


📢 निष्कर्ष: यह केवल अल्पसंख्यकों पर हमला नहीं, लोकतंत्र की आत्मा पर भी वार है

यह हिंसा केवल धर्मांतरण के खिलाफ नहीं है, यह उस आज़ादी के खिलाफ है जो भारतीय संविधान सभी को देता है। यह उस बहुलतावाद के खिलाफ है जिसकी नींव पर यह देश बना है।
हमें यह समझना होगा कि भारत केवल बहुसंख्यकों का नहीं, सबका देश है। और जब किसी अल्पसंख्यक समुदाय को लगातार डराया और निशाना बनाया जाता है, तो वह डर केवल उनका नहीं होता — वह लोकतंत्र के लिए भी खतरा बनता है।

राम पुनियानी

View all posts

ताजा खबर