June 15, 2025 1:17 am
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RSS का अखंड भारत का सपना क्यों झूठा है

लेखक विचारक राम पुनियानी ने बताया कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जिस अखंड भारत का सपना बेच रहा है वह झूठा व असंभव है। देश के विकास का रास्ता पड़ोसी देशों से दोस्ती के जरिए सार्क देशों से साझेदारी से ही निकलेगा

 एक खतरनाक विस्तारवादी कल्पना या सांस्कृतिक सहयोग का विकल्प?

आज जब देश की सियासी फ़िज़ा में ‘अखंड भारत’ की अवधारणा को ज़ोर-शोर से उछाला जा रहा है, तब यह ज़रूरी हो जाता है कि इसके निहितार्थों को समझा जाए। अखंड भारत की कल्पना कोई शुद्ध ऐतिहासिक अवधारणा नहीं, बल्कि एक गहराई तक धंसी सांप्रदायिक राजनीतिक परियोजना है, जिसे संघ परिवार विशेषकर RSS लंबे समय से बढ़ावा दे रहा है।

अखंड भारत और विभाजन की राजनीति

ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय, भारत में दो समानांतर सांप्रदायिक धाराएं उभरीं—मुस्लिम लीग और हिंदू महासभा। मुस्लिम लीग ने अंग्रेज़ों के प्रोत्साहन से पाकिस्तान की मांग रखी, जबकि हिंदू महासभा और बाद में RSS ने यह दावा किया कि भारत एक ‘सनातन हिंदू राष्ट्र’ है जहाँ मुसलमान और ईसाई ‘विदेशी’ हैं।

भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन के विपरीत, जिसने नागरिकता को धर्म नहीं, निवास के आधार पर परिभाषित किया, इन दोनों धाराओं ने धर्म को राष्ट्र की बुनियाद बनाने की कोशिश की। विभाजन इसी सांप्रदायिक सोच और ब्रिटिश ‘फूट डालो और राज करो’ नीति का नतीजा था।

नाथूराम गोडसे, गांधी हत्या और RSS की चुप्पी

RSS का विरोध विभाजन से नहीं था, बल्कि इस बात से था कि मुसलमानों और ईसाइयों को समान नागरिक माना गया। इसी सोच से नाथूराम गोडसे ने महात्मा गांधी की हत्या की। गांधी जी के विचारों से RSS इतना विचलित था कि गोडसे की राख को आज भी ‘अखंड भारत’ के पूर्ण होने तक संभाल कर रखा गया है—एक प्रतीकात्मक घोषणा कि विभाजन की पुनर्समीक्षा तब तक अधूरी है, जब तक ‘हिंदू राष्ट्र’ पूरा नहीं हो जाता।

विस्तारवाद की राजनीतिक रणनीति

RSS और उससे जुड़े संगठनों की मान्यता है कि न सिर्फ पाकिस्तान और बांग्लादेश बल्कि म्यांमार, श्रीलंका, अफगानिस्तान और दक्षिण पूर्व एशिया के हिस्से भी ‘अखंड भारत’ का हिस्सा हैं। यह कल्पना आधुनिक राष्ट्र-राज्य और संप्रभुता की अवधारणाओं के एकदम विपरीत है।

ऐसा लगता है मानो ‘अखंड भारत’ की यह अवधारणा केवल भूगोल नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक आधिपत्य की लालसा को दर्शाती है।

क्या एक वैकल्पिक दृष्टिकोण संभव है?

इसके बरक्स, राम पुनियानी यह सुझाते हैं कि दक्षिण एशियाई देशों को एक महा-गठबंधन जैसे सार्क (SAARC) की ओर बढ़ना चाहिए। यूरोपीय यूनियन का उदाहरण देते हुए, वे बताते हैं कि कैसे सहयोग, साझा वीज़ा, साझा करंसी और सांस्कृतिक आदान-प्रदान से क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा दिया जा सकता है।

यह विकल्प सार्वभौमिकता, समानता और सहयोग के सिद्धांतों पर आधारित है—न कि विस्तारवाद, धार्मिक वर्चस्व और आक्रामक राष्ट्रवाद पर।

अखंड भारत: एक असंभव, खतरनाक और अलोकतांत्रिक सपना

वर्तमान में भारत की मुस्लिम आबादी लगभग 14% है। यदि पाकिस्तान और बांग्लादेश को इस ‘अखंड भारत’ में जोड़ा जाए, तो यह जनसांख्यिकी उलट जाएगी, और ‘हिंदू राष्ट्र’ की पूरी परियोजना बेमानी हो जाएगी।

इसके साथ-साथ पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों ही स्वतंत्र, संप्रभु राष्ट्र हैं। उन्हें बलपूर्वक या सांस्कृतिक रूप से समाहित करने की कोई कोशिश न सिर्फ अंतरराष्ट्रीय कानूनों का उल्लंघन होगी, बल्कि दक्षिण एशिया में स्थायी अस्थिरता और संघर्ष को भी जन्म देगी।

निष्कर्ष: सांस्कृतिक बंधुत्व, विस्तारवादी राष्ट्रवाद नहीं

हमें अखंड भारत की राजनीतिक और सांप्रदायिक कल्पना को त्यागकर क्षेत्रीय सहयोग, शांति, समानता और बहुपक्षीय विकास की राह पर बढ़ना चाहिए। यही सच्ची राष्ट्रभक्ति है, और यही आज़ादी की असली विरासत।

राम पुनियानी

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