August 9, 2025 1:04 pm
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एलोरा के कैलाश मंदिर का क्या है निजाम कनेक्शन

महाराष्ट्र के औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजीनगर) से 18 किलोमीटर दूर एलोरा की गुफाओं में स्थित यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय वास्तुकला, वैज्ञानिक सोच और धार्मिक सह-अस्तित्व की जीती-जागती मिसाल है।

एक ही चट्टान से बना दुनिया का सबसे बड़ा मंदिर बता रहा धर्मों के भाईचारे की कहानी

अगर आप शिव भक्त हैं या मोहब्बत के पुजारी हैं और आपने अब तक कैलाश मंदिर नहीं देखा, तो मानिए आपकी साधना अधूरी है। महाराष्ट्र के औरंगाबाद (अब छत्रपति संभाजीनगर) से 18 किलोमीटर दूर एलोरा की गुफाओं में स्थित यह मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि भारतीय वास्तुकला, वैज्ञानिक सोच और धार्मिक सह-अस्तित्व की जीती-जागती मिसाल है।

दुनिया का इकलौता चट्टान से निर्मित मंदिर

कैलाश मंदिर दुनिया का इकलौता ऐसा मंदिर है जिसे एक ही चट्टान को काटकर बनाया गया है। UNESCO ने इसे 1983 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। एलोरा की 34 गुफाओं में स्थित यह गुफा संख्या 16 है। इसकी कल्पना, निर्माण और कलात्मकता किसी को भी चमत्कृत कर देती है। हर कोना भारतीय कारीगरों की असाधारण सृजनशीलता और मेहनत का साक्ष्य है।

संरक्षक: निजाम और औरंगज़ेब की भूमिका

बहुत कम लोग जानते हैं कि एलोरा की गुफाओं को संरक्षित रखने का श्रेय सातवें निजाम मीर उस्मान अली खान को जाता है। उन्होंने लाखों रुपये खर्च कर सड़कों का निर्माण, मरम्मत और संरक्षण कार्य कराया। यह तथ्य भारतीय पुरातत्व विभाग के दस्तावेजों में दर्ज है। दिलचस्प बात यह है कि इन गुफाओं का संरक्षण उस औरंगज़ेब के शासनकाल में भी हुआ, जिसे आज नफरत की राजनीति के तहत सिर्फ मंदिर तोड़ने वाला कहा जाता है। मगर उन्हीं के दौर में यह मंदिर सुरक्षित रहा।

साझी सांस्कृतिक विरासत की मिसाल

एलोरा की गुफाएं सिर्फ हिंदू नहीं, बौद्ध और जैन धर्म की गुफाओं को भी समेटे हुए हैं। बगल में बौद्ध गुफाएं हैं, दूसरी ओर जैन गुफाएं। तीनों धर्मों के स्थल एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, मानो यह संदेश दे रहे हों कि धर्मों की विविधता भारत की ताकत है।

स्थापत्य का चमत्कार और धार्मिक कला

मंदिर के अंदर प्रवेश करते ही पार्वती का सरोवर, गणेश, काली, गंगा, यमुना, सरस्वती की मूर्तियाँ मंत्रमुग्ध कर देती हैं। बारीकी से उकेरी गई महाभारत और रामायण की पूरी कथा एक ही पत्थर पर दर्ज है। मिथुन मूर्तियाँ, रति-कामदेव, और खजुराहो तथा कोणार्क की शैली की झलकें इस मंदिर को जीवंत और उदार बनाती हैं।

एकता की नींव: श्रम और प्रेम

पूरा कैलाश मंदिर हाथियों की मूर्तियों के ऊपर खड़ा है। चैनी-हथौड़ी से बनी ये मूर्तियाँ उस काल के मजदूरों की असाधारण मेहनत की मिसाल हैं। यह मंदिर सिर्फ पाषाण कला नहीं, बल्कि प्रेम, समर्पण और सहिष्णुता की पत्थर में उकेरी हुई कविता है।

अहिल्या बाई होलकर का योगदान

इतिहास गवाह है कि इंदौर की रानी अहिल्या बाई होलकर ने भी इस मंदिर के एक खंड की मरम्मत करवाई और वहां भित्ति चित्र बनवाए जो आज भी मौजूद हैं। यह दर्शाता है कि कैसे विभिन्न कालों के शासकों ने मिलकर इस विरासत को सहेजा।

आज की चुनौतियां और अपील

आज यह मंदिर भीड़, प्रदूषण और असंवेदनशील पर्यटन की मार झेल रहा है। खुले आसमान के नीचे स्थित कैलाश मंदिर बारिश, तापमान और स्पर्श से क्षतिग्रस्त हो रहा है। इसे बचाना अब हमारी जिम्मेदारी है।

अंतिम संदेश

नफरत फैलाने वाले धर्म के नाम पर जो ब्रिगेड मंदिर-मस्जिद की राजनीति करती है, उसे एलोरा जाकर यह सीखना चाहिए कि भारत की आत्मा सह-अस्तित्व, मोहब्बत और कला में बसती है।

कैलाश मंदिर न सिर्फ ईश्वर की आराधना का स्थल है, बल्कि भारतीय संस्कृति की विशालता और उदारता का गूंजता हुआ घोष है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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