इतिहास को तोड़ने-मरोड़ने की राजनीति: हल्दीघाटी युद्ध, राणा प्रताप और अकबर का सच
“अगर इतिहास आपके पक्ष में नहीं है, तो उसे बदल दो।”
यही हो रहा है जब राजस्थान की उपमुख्यमंत्री दिया कुमारी ने हाल ही में घोषणा की कि हल्दीघाटी के मैदान में लगे ताम्रपट्टिका को उन्होंने हटवा दिया क्योंकि उसमें लिखा था – अकबर जीता, राणा प्रताप हार गये।
अब नई पट्टिका में लिखा है – राणा प्रताप जीत गए।
क्या हल्दीघाटी युद्ध धर्म युद्ध था?
इतिहासकार इस दावे को खारिज करते हुए कहते हैं:
“हल्दीघाटी का युद्ध धर्म के आधार पर नहीं, मनसबदारी और राजनीतिक सत्ता के आधार पर लड़ा गया था।”
- अकबर खुद युद्ध में नहीं आए थे। उनकी ओर से राजा मान सिंह लड़े।
- राणा प्रताप की सेना में भी हिंदू-मुस्लिम दोनों सेनापति थे।
- मान सिंह खुद दिया कुमारी के पूर्वज हैं।
- युद्ध का कारण था – अकबर द्वारा राणा प्रताप को उचित ओहदा न देना।
शिवाजी बनाम औरंगजेब: धर्म नहीं, सत्ता का संघर्ष
इसी तरह:
“शिवाजी और औरंगजेब का संघर्ष भी धर्म का नहीं था, बल्कि सत्ता विस्तार का था।”
- औरंगजेब की ओर से राजा जयसिंह लड़े।
- शिवाजी की सेना में भी मुस्लिम सेनापति थे।
- संभाजी महाराज ने दो बार औरंगजेब के साथ मिलकर युद्ध किया।
- छावा फिल्म जैसे माध्यम इन तथ्यों को नहीं दिखाते, क्योंकि उनका उद्देश्य धार्मिक ध्रुवीकरण होता है।
इतिहास का सांप्रदायिक उपयोग
इतिहासकार साफ कहते हैं:
“RSS इन युद्धों को हिंदू बनाम मुस्लिम युद्ध के तौर पर दिखाना चाहता है, ताकि आज के समाज में नफरत फैलाई जा सके।”
- ये युद्ध राजनीतिक और सत्ता के लिए थे, न कि धार्मिक श्रेष्ठता के लिए।
- मनसबदारी और वर्चस्व की लड़ाई को ‘धर्म युद्ध’ बना देना इतिहास के साथ धोखा है।
निष्कर्ष: इतिहास को हथियार न बनाएं
राजस्थान हो या महाराष्ट्र, राजनीतिक जरूरत के हिसाब से इतिहास बदलने का काम तेजी से चल रहा है।
अकबर बनाम राणा प्रताप, या औरंगजेब बनाम शिवाजी – सभी युद्धों को धर्म के चश्मे से देखना इतिहास और समाज दोनों के लिए घातक है।