देखते-देखते दफन हुआ पूरा गांव टूट कर गिरे ग्लेशियर में
जलवायु परिवर्तन, गर्म होती धरती और पिघलते-टूटते ग्लेशियर किस तरह का खतरा पैदा कर रहे हैं इसका एक और उदाहरण बुधवार को देखने को मिला जब स्विट्जरलैंड का एक बेहद खूबसूरत गांव ब्लैटन बगल के पहाड़ से टूटे बिर्श ग्लेशियर और उसके साथ नीचे आए मलबे में समा गया। एक बेहद अकल्पनीय सी लेकिन बेहद डरावनी घटना पल-पल कई कैमरों में भी कैद हो गई, जिसमें साफ दिख रहा है कि किस तरह से देखते ही देखते उस इलाके का भूगोल बदल गया।
यहां रहने वाले लोगों ने कभी सोचा भी न था कि ऐसा भी हो सकता है और ब्लैटन कस्बा अब मलबे में दबकर ऐसा हो गया है कि देखकर आप कह नहीं सकते कि यहां कभी कोई आबादी रही होगी। यह तो शुक्र था कि एक तो कस्बे की आबादी कम होने से और लोगों को समय पर खबर मिल जाने से ग्लेशियर के टूटने के बाद मलबा नीचे तक पहुंचने से पहले ही वहां से लोगों को हटा लिया गया और कोई जनहानि नहीं हुई। लेकिन क्या और कैसे हुआ, यह हम इन तस्वीरों में देख सकते हैं।
हम भारत में ऊपरी इलाको में ग्लेशियर टूटने के बाद निचले इलाके में मलबे व बाढ़ से जानमाल की बड़ी हानि की घटनाएं पिछले कुछ सालों में उत्तराखंड और सिक्किम में देख चुके हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि स्विट्जरलैंड की घटना आल्प्स के पहाड़ों पर जलवायु परिवर्तन के असर का सबसे जीता-जागता नमूना है। यूरोप के कई इलाके पिछले कुछ सालों से कम बर्फबारी से जूझ रहे हैं।


तापमान गर्म हो रहा है और इसी वजह से बर्फीले पहाड़ों पर पर्माफ्रोस्ट पिघल रही है है। पर्माफ्रोस्ट दरअसल ठंडे व बर्फीले इलाकों में जमीन की उस निचली परत को कहते हैं जो स्थायी रूप से जमी रहती है। लेकिन जब ऊपरी सतह गर्म होने लगती है तो धीरे-धीरे निचली सतह यानी पर्माफ्रोस्ट भी नर्म होने लगती है। इसीलिए उनमें जमी चट्टानें व पत्थर ढीले पड़कर खिसकने लगते हैं।
स्विट्जरलैंड में कुछ दिनों पहले भी इस ग्लेशियर के पीछे पहाड़ी से कुछ मलबा नीचे आया था तो लोगों को वहां से हटा दिया गया था। लेकिन विश्लेषकों के अनुसार ब्लैटन कस्बे में जो नुकसान हुआ है, वैसा आल्प्स पर्वतों में इस सदी में, या इससे पिछली सदी में भी कभी कोई इस तरह का वाकया नहीं हुआ। जाहिर है, यह घटना बड़ी चिंता का मसला है।