Home » आबोहवा » जो दुनिया में कहीं जंगलों में नहीं वो स्पिक्स मकाओ कैसे है वनतारा में
हम अक्सर दुनियाभर के चिड़ियाघरों में या बर्ड पार्क आदि में रंग-बिरंगे बड़ो तोते सरीखे पक्षी देखते हैं, जिन्हें मकाओ कहा जाता है। इन्हीं में से एक है स्पिक्स मकाओ या लिटिल ब्लू मकाओ। मकाओ की यह किस्म केवल दुनिया में केवल ब्राजील में पाई जाती रही है। साल 2019 में IUCN यानी इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर ने इसे extinct in the wild यानी जंगल से लुप्त घोषित कर दिया था, यानी दुनिया में कहीं भी इस मकाओ प्रजाति का कोई एक पक्षी भी अपने प्राकृतिक निवास में मौजूद नहीं था। जो थे, सिर्फ कंजर्वेशन प्रोग्राम के तहत captivity में यानी इंसानी कब्जे में थे... इस समय यानी मार्च 2025 में ब्राजील में घने जंगलों में अपने प्राकृतिक निवास से हजारों मील दूर- एक अलग माहौल में और अलग मौसम में 26 स्पिक्स मकाओ वनतारा में मौजूद हैं।

ब्राजील के जंगलों से लुप्त हुआ यह दुर्लभ मकाओ जर्मनी के रास्ते वनतारा लाया गया

सब गोलमाल है, में बात फिर रिलायंस और अनंत अंबानी के वनतारा की। हमने पिछली बार मोदीजी की वनतारा सफारी से उपजे सवालों के बारे में चर्चा की थी। अब आने वाले दिनों में हम वहां रखे गए अलग-अलग जानवरों से जुड़ी बातें करेंगे। चर्चा इसलिए जरूरी है क्योंकि इस तरह की चर्चाओं व सवालों को लगातार दबाने की कोशिश हो रही है। वनतारा में अलग-अलग जानवरों के पहुंचने या उन्हें हासिल करने की कहानियां बड़ी दिलचस्प हैं। चाहे वो हिप्पोपोटोमस यानी दरियाई घोड़ा हो या गुर्रिल्ला है या फिर कुछ समय पहले लुप्तप्राय घोषित किया जा चुका स्पिक्स मैकाओ।

वनतारा के लिए हाथी के अलावा बाकी जानवर हासिल करने का जिम्मा देखने वाले ग्रीन जूलोजिकल रेस्क्यू ऐंड रिहैबिलिटेशन सेंटर ने जो अंतरराष्ट्रीय सौदे किये हैं, उनमें से स्पिक्स मकाओ का सौदा भी संदेह के घेरे में आता है। यह मकाओ दुनिया के सबसे दुर्लभ पक्षियों में से एक है। एक जर्मन नेचुरलिस्ट गियोर्ग मार्कग्रेव ने सबसे पहले इसके बारे में 1638 में ब्योरा लिखा था। लेकिन इसे नाम मिला एक अन्य जर्मन नेचुरलिस्ट जोहान बैपटिस्ट वॉन स्पिक्स का जिन्होंने ब्राजील के उत्तरपूर्व बाहिया में रियो साओ फ्रांसिस्को के किनारे 1819 में ऐसा एक पक्षी पकड़ा था। हल्के नीले रंग का यह मकाओ मुख्य रूप से अवैध व्यापार की वजह से 1990 के दशक के मध्य में ब्राजील में जंगलों में अपने प्राकृतिक निवास से गायब हो गया था। यहां तक कि इंसानी कब्जे यानी captivity  में मौजूद स्प्किस मकाओ की संख्या में भी तेजी से गिरावट आई और 1996 में इनकी संख्या केवल 36 रह गई थी।

काफी कोशिशों के बाद इस दशक की शुरुआत में इन मकाओ की संख्या 204 हो गई थी और तकरीबन ये सारे पक्षी जर्मनी की एसोसिएशन फॉर द कंजर्वेशन ऑफ थ्रेटंड पैरट्स यानी एसीटीपी के पास थे। वनतारा के बारे में हिमाल साउथ एशियन में एम. राजशेखर की मार्च 2024 में आई जिस रिपोर्ट का हवाला हमने पिछली बार दिया था, वह बताती है कि साल 2020 में इन 204 मकाओ में से 52 को फिर से ब्राजील भेज दिया गया जहां इस प्रजाति को उसके मूल प्राकृतिक निवास में फिर से भेजने की कोशिशें चल रही थीं।

और, फिर 2022-23 में अचानक एसीटीपी ने 26 स्पिक्स मकाओ ग्रीन जूलोजिकल को सौंप दिये। इसके अलावा उसने आठ सेंट विंसेंट एमेजन और चार लीयर्स मकाओ भी भेजे। अब एसीटीपी का यह फैसला वन्यजीव जानकारों को हैरान करने वाला था। जब पहले ही दुनिया में स्पिक्स मकाओ इतनी कम संख्या में बचे हैं और ब्राजील में उन्हें फिर से प्राकृतिक निवास में भेजने की कोशिशें चल रही हैं तो ऐसे में क्यों 26 पक्षी इतनी दूर ऐसी जगह भेजे गए जो उनका प्राकृतिक निवास नहीं है? एक endangered प्रजाति को एक नये माहौल में क्यों भेजा गया, वह भी दुनिया की सबसे बड़ी पेट्रोकेमिकल रिफाइनरी के परिसर में स्थित एक केंद्र में? ध्यान दीजिए कि यह बात उस समय की है, जब भारत में किसी को वनतारा के बारे में कुछ भी पता तक न था।

नवंबर 2023  में साइट्स यानी कनवेंशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड इन एनडेंजर्ड स्पीशीज की एक महत्वपूर्ण बैठक में वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन का काम करने वाले कई एनजीओ ने एसीटीपी द्वारा पक्षियों के हस्तांतरण पर सवाल उठाए थे। इन्हीं में वनतारा को भेजे गए स्पिक्स मकाओ का मुद्दा भी था, जिसे यूरोपीय अधिकारियों ने भी हरी झंडी दे दी थी।

हालांकि उस मीटिंग में एसीटीपी और ग्रीन जूलोजिकल ने इस हस्तांतरण को जायज बताया और कहा कि वनतारा में इन मकाओ के लिए कंजर्वेशन ब्रीडिंग सेंटर स्थापित किया जा रहा है। लेकिन इस पर ब्राजील के प्रतिनिधियों ने कहा कि उनके देश ने इन मकाओ को जामनगर भेजने की कभी मंजूरी नहीं दी थी। उन्होंने यह भी कहा कि ग्रीन जूलोजिकल ब्राजील सरकार द्वारा चलाए जाने वाले स्पिक्स मकाओ पॉपुलेशन मैनेजमेंट प्रोग्राम का हिस्सा भी नहीं है। ब्राजील का मानना है कि यह पक्षी जहां कहीं भी मौजूद हो, उसे वापस ब्राजील की संस्थाओं के पास भेजा जाना चाहिए क्योंकि ब्राजील ही उनका मूल निवास है। किसी जोखिम से बचने के लिए अगर पक्षियों की आबादी को अलग-अलग जगहों पर रखना जरूरी भी हो तो भी उन्हें प्राथमिक तौर पर ब्राजील की संस्थाओं में भेजा जाना चाहिए जो, इनके रखरखाव में पूरी तरह सक्षम हैं।

हिमाल की रिपोर्ट में एसीटीपी ने कहा है कि वह अपने सारी पक्षियों को एक ही जगह पर रखने के biosecurity जोखिम को कम करने के लिए उन्हें रखने की दूसरी जगह भी विकसित करने पर काम कर रहा है। स्पिक्स मकाओ ग्रीन जूलोजिकल को ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत ही दिए गए हैं और वे हमेशा एसीटीपी के तहत चल रहे स्पिक्स मकाओ के मैनेजमेंट प्रोग्राम के तहत ही रहेंगे, उसमें कोई कमर्शियल लेन देन नहीं है। एसीटीपी का यह भी कहना है कि उसने अपनी योजनाओं के बारे में ब्राजील के पर्यावरण मंत्रालय से चर्चा की थी जिसने इस पर रजामंदी जाहिर की थी। बकौल एसीटीपी साइट्स की मीटिंग में आपत्ति जाहिर करने वाले ब्राजीली प्रतिनिधि इससे वाकिफ़ नहीं थे, और उन्होंने बाद में अपनी आपत्ति वापस ले ली थी।

ग्रीन जूलोजिकल का भी कहना था कि उसने ब्राजील सरकार के संबद्ध विभाग की मंजूरी से एसीटीपी के साथ ब्रीडिंग लोन करार किया है और वनतारा में हम एनडेंजर्ड स्पीशीज के कंजर्वेशन के लिए काम कर रहे हैं और बाद में जानवरों, जिनमें स्पिक्स मकाओ भी शामिल हैं, को उनके प्राकृतिक निवास में छोड़ दिया जाएगा। एसीटीपी का कहना है कि ग्रीन जूलोजिकल को इसलिए चुना गया क्योंकि उनके पास दुनिया में सबसे बेहतरीन सुविधाएं और विशेषज्ञ हैं।

लेकिन वन्यजीव अपराधों पर निगाह रखने वाले जानकारों का सवाल यही है कि अगर एसीटीपी को अपने पक्षियों को अलग-अलग जगहों पर ही रखना है तो क्यों उन्हें अपने मूल निवास के नजदीक कहीं रखा जाता, क्यों उन्होंने भारत को चुना… और उसमें भी एक सूखे राज्य को… और उसमें भी उस इलाके को जो एक रिफाइनरी के बगल में है।

जाहिर है, कुछ तो सवाल हैं जिनके जवाब मिल नहीं पा रहे हैं। या यू कहें, कुछ तो है जिसकी पर्देदारी है।

उपेंद्र स्वामी

पैदाइश और पढ़ाई-लिखाई उदयपुर (राजस्थान) से। दिल्ली में पत्रकारिता में 1991 से सक्रिय। दैनिक जागरण, कारोबार, व अमर उजाला जैसे अखबारों में लंबे समय तक वरिष्ठ समाचार संपादक के रूप में कार्य। वेब मीडिया का अनुभव व अध्यापन। फ़ोटोग्राफ़ी और घुमक्कड़ी का शौक। ट्रेकिंग व बाइकिंग में गहरी रुचि। ट्रैवल पर मासिक पत्रिका आवारा मुसाफ़िर का प्रकाशन। अमर्त्य सेन, ज्य़ॉं द्रेज, शेरिल पेयर, अमिता बाविस्कर, डोमिनीक लापिएर जैसे लेखकों की किताबों का हिंदी में अनुवाद।

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