चुनाव आयोग और सरकार की चाल से वोटर लिस्ट पर मंडराता खतरा
2025 के अंत में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर सियासी ज़मीन पर कुछ और ही खेल खेला जा रहा है।
बात सिर्फ रैलियों और घोषणाओं तक सीमित नहीं है, मुद्दा वोटिंग अधिकार पर है—और बिहार के 7.7 करोड़ मतदाताओं पर सीधा असर डालने वाला है।
चुनाव या छंटनी? NRC स्टाइल ‘नाम काटो अभियान’
हाल ही में चुनाव आयोग द्वारा जारी एक Enumeration Form को लेकर जबरदस्त विरोध शुरू हो गया है।
इस फॉर्म में मतदाताओं से मांगे गए दस्तावेजों की सूची देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि बिहार में NRC की तरह की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है, भले नाम कुछ और हो।
क्या मांग रहा है चुनाव आयोग?
यहाँ देखें किसे क्या देना होगा:
🔹 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे मतदाताओं को – जन्म प्रमाण पत्र
🔹 1987 से 2 दिसंबर 2004 के बीच जन्मे लोगों को – स्वयं का और माता-पिता में से किसी एक का जन्म प्रमाण पत्र
🔹 2 दिसंबर 2004 के बाद जन्मे मतदाता को – स्वयं का + माता + पिता – तीनों के प्रमाण पत्र
सोचिए! कौन सा प्रवासी मजदूर या ग्रामीण नौजवान अपने मां-बाप के जन्म प्रमाणपत्र साथ लिए घूमता होगा?
यह सिर्फ़ दस्तावेज़ीकरण नहीं, यह बहिष्करण की पूर्व-योजना है
विशेषज्ञों और विपक्षी दलों का कहना है कि यह “संदेह के आधार पर वोटर हटाओ अभियान” है।
भाकपा माले ने इस प्रक्रिया को मतदाताओं से वोट का अधिकार छीनने की साज़िश बताया है।
क्यों बिहार?
- बिहार में बड़े पैमाने पर प्रवासी श्रमिक हैं, जो पंजाब, महाराष्ट्र, दिल्ली जैसे राज्यों में मजदूरी करते हैं।
सवाल है—क्या वो अपने मां-बाप के जन्म प्रमाणपत्र लेकर चुनावी समय पर फॉर्म भरने बिहार लौटेंगे? - समय भी बहुत कम है। चुनावी प्रक्रिया अगस्त-सितंबर में शुरू होनी है, और फॉर्म भरने की आख़िरी तारीख एक महीने के भीतर बताई जा रही है।
- यानी कि 7.7 करोड़ मतदाताओं में लाखों लोग सूची से बाहर हो सकते हैं—क्योंकि उनके पास प्रमाणपत्र नहीं हैं, गुनाह नहीं।
और उस दिन प्रधानमंत्री आएंगे 9वीं बार
इसी बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 15 जुलाई से 15 सितंबर के बीच 9 बार बिहार में चुनाव प्रचार करेंगे।
भव्य रैलियां होंगी, Operation Sindoor की चर्चा होगी, नई योजनाओं का ऐलान होगा, पैसों की बरसात होगी।
और वहीं दूसरी तरफ लाखों मतदाता अपने वोटर लिस्ट में नाम बचाने की लड़ाई लड़ रहे होंगे।
यह कैसा नागरिकता सिद्ध करने का खेल?
चुनाव आयोग का दावा है कि यह प्रक्रिया 1955 के सिटिज़नशिप एक्ट के तहत की जा रही है।
लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसे अलिखित NRC भी कहा जा सकता है—खासतौर पर जब इससे बड़े तबके को मताधिकार से वंचित कर दिया जाए।
असल सवाल यह है:
- क्या चुनाव आयोग का काम न्यायसंगत चुनाव कराना है या मतदाता हटाना?
- क्या सरकार के साथ कदमताल मिलाकर आयोग मतदाता संहार अभियान चला रहा है?