दिल्ली को गरीबों से मुक्त बनाने का खतरनाक खेल धड़ल्ले से चल रहा है
दिल्ली में इन दिनों दो तस्वीरें एक साथ उभर रही हैं—एक ओर कांवड़ यात्रियों पर फूल बरसाए जा रहे हैं और लाखों रुपये की घोषणाएं हो रही हैं, वहीं दूसरी ओर वज़ीरपुर और अन्य बस्तियों में हज़ारों गरीबों के सिर से छत छीन ली जा रही है।
यह दोहरा चेहरा रेखा गुप्ता के नेतृत्व वाली दिल्ली सरकार और केंद्र में बैठी मोदी सरकार की गरीब विरोधी और धार्मिक ध्रुवीकरण की रणनीति को उजागर करता है।
“जहां झुग्गी, वहां पक्का मकान” से “जहां झुग्गी, वहां बुलडोज़र” तक
कभी नरेंद्र मोदी और रेखा गुप्ता झुग्गियों के सामने खड़े होकर चाबी थमाते थे और वादा करते थे कि जहां झुग्गी है, वहीं पक्का मकान बनेगा। अब वही सरकार कह रही है कि ये झुग्गियां ही अवैध हैं।
वज़ीरपुर में हज़ारों लोग बेघर कर दिए गए, जिनके पास आधार कार्ड, वोटर आईडी और राशन कार्ड थे। सवाल ये है कि:
अगर ये लोग अवैध हैं तो इन्हीं के वोटों से बनी सरकार कैसे वैध है?
पुनर्वास नहीं, मुआवज़ा नहीं—सिर्फ उजाड़ना
रेखा गुप्ता सरकार और रेलवे प्रशासन ने 40-50 साल से बसे इलाकों को केवल एक नोटिस चिपका कर उजाड़ दिया।
न पुनर्वास की योजना, न कोई मुआवज़ा, सिर्फ बुलडोज़र की गर्जना और बच्चों, महिलाओं, बुजुर्गों की चीखें।
श्वेता राज, जो इस मामले में कानूनी कार्यवाही कर रही हैं, कहती हैं:
“बारिश के मौसम में लोग सड़क पर हैं। न राहत शिविर है, न कोई पूछने वाला।”
कांवड़ समितियों को 10 लाख रुपये, लेकिन गरीबों के लिए कुछ नहीं
रेखा गुप्ता खुद घोषणा करती हैं कि कांवड़ समितियों को 10 लाख रुपये तक दिए जाएंगे।
लेकिन जिन गरीबों ने इस शहर को बनाया, उन्हें एक तिरपाल तक नहीं मिलती।
क्या ये सरकार सिर्फ एक खास धार्मिक पहचान वालों के लिए काम कर रही है?
किस दिल्ली की तैयारी है?
स्पष्ट है कि दिल्ली को ‘गरीब मुक्त’ करने का एक खतरनाक मास्टर प्लान चल रहा है। इसका मकसद है:
- शहर की ज़मीन को बड़े पूंजीपतियों को सौंपना
- झुग्गियों को हटाकर रीयल एस्टेट के रास्ते खोलना
- मेहनतकशों को बिना पुनर्वास के बाहर करना
बच्चों का भविष्य अंधेरे में
इन बस्तियों में रहने वाले हज़ारों बच्चे आज बेघर हैं।
क्या वे स्कूल जा सकेंगे? क्या वे बाल मज़दूरी या बेघर होने से बच पाएंगे?
रेखा गुप्ता को इससे फर्क नहीं पड़ता। न मोदी सरकार को।
निष्कर्ष: दिल्ली बनाम दिल्लीवालों की लड़ाई
आज की दिल्ली में दो तरह के नागरिक हैं—एक जिन्हें फूलों की वर्षा मिलती है और सरकारी अनुदान, और दूसरे जिन्हें अपने ही देश में गैर-कानूनी कहा जाता है और जिन पर बुलडोज़र चढ़ते हैं।
ये लड़ाई सिर्फ मकानों की नहीं, ये लड़ाई इंसानियत की, बराबरी की और संविधान की है।