चुनावी बिहार में पांचवी बार पहुंचे मोदी, वादों की आंधी में घिरी सच्चाई
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस साल पांचवीं बार बिहार पहुंचे। रैली, गीत-संगीत, रंग-बिरंगी मंच सज्जा और चुनावी घोषणाओं की बरसात — सबकुछ पहले से बड़ा और भव्य था। लेकिन बिहार की जनता, जो राजनीति की नस-नस पहचानती है, इस बार कुछ अलग मूड में थी।
मंच से जब “मोदी जी आ गइले” जैसे लोकगीत गूंजे, तब यह भी साफ हो गया कि चुनावी रणभेरी बज चुकी है। लेकिन भीड़ के बीच से उभरी असली आवाज़ें सत्ता को बेचैन कर सकती हैं।
🚌 रैली में ‘पब्लिक’ या ‘ड्रामा’? वीडियो से हुआ खुलासा
बिहार के सिवान में हुई मोदी की रैली से पहले एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ।
इसमें महिलाएं और बुज़ुर्ग बताते दिखे कि उन्हें रैली में आम पब्लिक बनकर जाने को कहा गया, लेकिन न भोजन मिला, न सुविधा।
“बोला गया ड्रेसेज नहीं पहनना है, बस में चढ़ा दिया गया, लेकिन वहां कोई इंतजाम नहीं है।”
यह वीडियो भागलपुर की माले इकाई ने जारी किया। इससे मोदी सरकार के दावों की पोल खुल गई।
🧱 पिछली रैलियों का ट्रैक रिकॉर्ड: ‘सुपर फ्लॉप शो’
यह कोई पहली बार नहीं है। इससे पहले भी जब मोदी पटना और शाहाबाद इलाके में गए थे, तब भी मीडिया ने रैली में कम भीड़, और मजबूरी में लाई गई जनता की खबरें दिखाई थीं।
बिहार की जनता समझती है —
चुनावी रैलियों का खर्चा और वादों का वजन सिर्फ चुनाव जीतने तक होता है, उसके बाद सब फीका पड़ जाता है।
🎤 क्या बोले मोदी और क्या भूले?
मोदी का भाषण सुनकर कई लोगों ने कहा कि उन्हें याद ही नहीं कि पिछले 20 साल से नितीश कुमार ही बिहार में सत्ता में हैं —
कभी बीजेपी के साथ, कभी उसके खिलाफ।
उन्होंने सवाल पूछे — बिहार में कितने डिफेंस कॉरिडोर बने? कितने टेक्सटाइल पार्क?
कितने इंटरनैशनल एयरपोर्ट्स? कितनी PSU कंपनियां?
और जब मोदी जी ने कहा कि “अब बिहार को जंगलराज से मुक्त कराना है”, तो तेजस्वी यादव और भाकपा माले ने सीधा पलटवार किया —
“जंगलराज तो पिछले 20 साल से उन्हीं के गठबंधन का है!”
🧑⚖️ RSS कोटा और मंत्री जी का दामाद: सीधा खुलासा
बिहार सरकार के मंत्री अशोक चौधरी ने एक प्रेसवार्ता में स्वीकार किया कि उनके दामाद को बिहार धार्मिक न्याय परिषद में RSS कोटे से नियुक्ति मिली है।
इस पर भाकपा माले महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य और तेजस्वी यादव दोनों ने सरकार को घेरा।
आरोप: मंत्रिमंडल से बाहर सरकार चलाने वाली शक्ति बन चुकी है आरएसएस।
🚶♂️ बदलिए सरकार, बदलिए बिहार: माले की रैली सिवान से
जब प्रधानमंत्री सिवान में सभा कर रहे थे, उसी समय भाकपा माले की “बदलिए सरकार, बदलिए बिहार” यात्रा भी सड़कों पर थी।
भीड़ और ऊर्जा दोनों में यह यात्रा भी कम नहीं थी — और यही असली लोकतंत्र की ताक़त है।
✈️ सवाल जो बार-बार उठते हैं
- विदेश में तो तुरंत रिएक्शन, देश में कब?
पहलगाम आतंकी हमले में 26 मौतों के बाद भी मोदी कश्मीर नहीं गए थे, लेकिन चुनाव का बिगुल बजते ही बिहार में सबसे पहले दौड़कर पहुंच जाते हैं। - नितीश कुमार के साथ या बिना?
मोदी के मंच पर नितीश तो मौजूद थे, लेकिन आलोचना भी उन्हीं के शासन के खिलाफ थी — जनता समझ चुकी है कि साथ लड़ो, फिर सारा दोष अकेले डालो।
📣 निष्कर्ष:
बिहार का राजनीतिक तापमान बढ़ चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की बार-बार यात्रा, करोड़ों की घोषणाएं और आरएसएस कोटे की नियुक्तियां — ये सब इशारा कर रहे हैं कि बिहार अब सिर्फ चुनावी युद्धभूमि नहीं, बल्कि वैचारिक टकराव की प्रयोगशाला बन चुका है।
लेकिन बिहार की जनता हर वादे का हिसाब मांगेगी — चाहे वह सिंदूर हो या स्कीम, चाहे मंच हो या महंगाई।