कुनो नेशनल पार्क में इस समय कुल 25 चीते बताए जाते हैं- नर व मादा, वयस्क व शावक मिलाकर। आपको याद होगा कि यहां सितंबर 2022 में मोदीजी ने अपने जन्मदिन पर नामीबिया से लाए गए चीते छोड़े थे। बाद में कुछ चीते दक्षिण अफ्रीका से भी लाए गए। अब खबरें यह हैं कि यहां इस साल 20 चीते केन्या से लाए जाने हैं। उधर जामनगर में रिलायंस की पेट्रोकेमिकल रिफाइनरी के परिसर में स्थित तीन हजार एकड़ में फैले वनतारा में बाकी दुनियाभर के हजारों जानवरों के साथ करीब 56 चीते हैं। कुनो नेशनल पार्क 748 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है।
अब यहां बेशक यह अंतर तो है कि कुनो एक खुला जंगल है और वनतारा एक कथित तौर पर रेस्क्यू व रिहैबिलिटेशन सेंटर… जहां ज्यादातर जानवर कैप्टिव यानी 24 घंटे इंसानी चौकसी में रखे जाते हैं। इसलिए आप संख्या के आधार पर दोनों जगहों की तुलना नहीं कर सकते। लेकिन आप इस हकीकत से मुंह नहीं मोड़ सकते कि जब हम सत्तर साल बाद भारत में जंगलों में चीता के reintroduction का जश्न मना रहे थे, ठीक उसी समय वनतारा में भी चीता उसी अफ्रीका से खरीदकर लाए जा रहे थे, लेकिन उसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं था। ऐसे में कुछ सवाल तो उठते ही हैं- क्या दोनों कोशिशें एक-दूसरे के साथ तालमेल में – चाहे वो घोषित रूप से हो या पर्दे के पीछे – चल रही थीं?
हाल की कई बातों व घटनाओं से ऐसा जाहिर होता है, साथ में जाहिर यह भी होता है कि भारत सरकार के चीता प्रोजेक्ट में सब कुछ ठीक तो नहीं चल रहा, वह भी तब जब एक महीने पहले प्रधानमंत्री मोदी यह ऐलान कर चुके हैं कि चीतों को कुनो के बाद मध्य प्रदेश में ही गांधी सागर सेंक्चुअरी और गुजरात में बन्नी ग्रासलैंड्स में भी छोड़ा जाएगा। हमने चीता प्रोजेक्ट और वनतारा के बारे में RTI activist अजय दुबे से विस्तार से बातचीत की।
इससे पहले कि हम उस बातचीत पर आगे बढ़ें, थोड़ी नजर चीतों से जुड़ी कुछ अन्य खबरों और उनके निहितार्थ पर भी डालते हैं।
पिछले साल दिसंबर में एक खबर आई थी कि वनतारा में चीता कंजर्वेशन प्रोग्राम में पांच शावक पैदा हुए। अब इस खबर की शब्दावली पर नजर डालिए। समाचार एजेंसी एएनआई ने पहली लाइन लिखी ‘In a significant boost to the Government of India’s in-situ conservation efforts’ यानी भारत सरकार के मूल संरक्षण प्रयासों में महत्वपूर्ण तेजी लाते हुए…
अब सवाल यह है कि वनतारा में कथित तौर पर रेस्क्यू करके लाए गए चीते कैसे भारत सरकार के कंजर्वेशन प्रयासों का हिस्सा हुए? खबर में यह भी लिखा गया था कि ‘These cubs, born as part of Vantara’s Cheetah Conservation Program, represent a significant step toward reintroducing cheetahs into India’s wild landscapes. As per Vantara’s objectives, these cubs will soon be rewilded to help restore India’s biodiversity…. यहां फिर से यह सवाल है कि जब चीता reintroduction प्रोग्राम भारत सरकार का है, तो उसमें वनतारा कब से भागीदार हुआ? Captive चीतों के वहां पैदा हुए शावक किस प्रक्रिया के तहत और कहां छोड़े जाएंगे?
खबर आगे कहती है- Vantara’s Cheetah Conservation Program supports the Government of India’s initiative to reintroduce cheetahs into India. This ex-situ effort creates an environment that closely mirrors the cheetahs’ natural habitat, helping them acclimatize to India’s weather and conditions. Vantara will work in close collaboration with the central government and selected state governments to implement the rewilding program…. अब यह collaboration कब व कैसे हुआ, होगा… इस बारे में न वनतारा का कुछ कहना है और न भारत सरकार का।
यह सब तब है जब भारत द्वारा दक्षिण अफ्रीका व नामीबिया से चीते लाकर कुनो में बसाने और वनतारा द्वारा बड़े पैमाने पर दुनियाभर से वन्यजीव हासिल करने, दोनों ही को लेकर गंभीर सवाल खड़े होते रहे हैं। दक्षिण अफ्रीका में वन्यजीवों के हितों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक नेटवर्क Wildlife Animal Protection Forum of South Africa यानी WAPFSA ने पिछले महीने जो आपत्ति वनतारा को लेकर जताई थी, उसमें चीतों का भी मसला था। वनतारा को देखने वाली संस्था ग्रीन जूलोजिकल रेस्क्यू ऐंड रिहैबिलिटेशन सेंटर ने साल 2023-24 की अपनी सालाना रिपोर्ट में इसका जिक्र कर रखा है कि दक्षिण अफ्रीका से 56 चीते वनतारा को निर्यात किए गए थे। ये 56 चीते कहां से, कैसे और किस अवस्था में लिए गए, इसको लेकर गंभीर सवाल हैं। डर यह भी जताया जा रहा है कि वनतारा के जानवरों को कहीं ब्रीडिंग मशीन में न तब्दील कर दिया जाए। इस संदर्भ में वाप्फ्सा द्वारा 6 मार्च को दक्षिण अफ्रीकी सरकार को लिखे पत्र के बाद काफी बवाल भी मचा था और इसकी खबर कई भारतीय मीडिया संस्थानों ने छापकर बाद में हटा ली थी। ग्रीन जूलोजिकल ने वाप्फ्सा को मानहानि का नोटिस भेज डाला था और वाप्फसा ने जवाब में कहा था कि उसे धमकाने की कोशिश हो रही है।
भारत सरकार के चीता प्रोजेक्ट और वनतारा के ‘तालमेल’ का एक और पहलू है। अगर आपको याद हो तो, कुनो में दो साल पहले कुछ चीते बीमारी से मारे गए थे। मार्च से मई 2023 के दरम्यान तीन चीतों की मौत हो गई थी। मजेदार बात यह है कि इन चीतों की मौत के बाद प्रोजेक्ट चीता की देखरेख कर रही नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी यानी एनटीसीए ने मदद के लिए वनतारा से विशेषज्ञों व डॉक्टरों को बुलवाया था। मई 2023 में वनतारा से एक टीम कुनो गई थी।
एक्टीविस्ट अजय दुबे ने उस समय भी ग्रीन जूलोजिकल को इसमें शामिल करने पर सवाल उठाया था जबकि एनटीसीए, वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, दक्षिण अफ्रीका और नामीबिया के तमाम एक्सपर्ट प्रोजेक्ट चीता से जुड़े हुए थे। और यदि जरूरत पड़ ही गई थी तो इसे छुपाया क्यों गया था। अजय दुबे बताते हैं कि प्रोजेक्ट चीता की सालाना रिपोर्ट में ग्रीन जूलोजिकल से मदद लिए जाने का कहीं कोई उल्लेख नहीं है। समाचार एजेंसी पीटीआई ने उस समय RTI के जरिये जो जानकारी मांगी थी, उसके अनुसार चीता प्रोजेक्ट मॉनिटरिंग कमिटी की बैठकों के मिनट्स में भी इस सहयोग का कहीं कोई जिक्र नहीं मिलता है। हालांकि कुनो के प्रोजेक्ट चीता के लिए अलग से चार वेटेरिनेरियन नियुक्त हैं और उनके अलावा दक्षिण अफ्रीका व नामीबिया के भी कई नामी-गिरामी वेटेरिनेरियन्स की सलाहें मिल रही हैं। फिर भला ग्रीन जूलोजिकल की क्या जरूरत आन पड़ी? इस बारे में अजय दुबे क्या कहते हैं, सुनते हैं…
अब बात फिर से सरकार के प्रोजेक्ट चीता की। मोदीजी ने 3 मार्च को सासन-गिर में नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्डलाइफ की बैठक में इस बात का ऐलान किया कि भारत में चीतों को नए इलाकों में छोड़ा जाएगा, जिनमें मध्य प्रदेश में निमाड़ इलाके में फैली और गुजरात व राजस्थान को छूती गांधी सागर सेंक्चुअरी और गुजरात में कच्छ इलाके में बन्नी ग्रासलैंड्स शामिल हैं। अब उस घोषणा में इस बात का कोई जिक्र नहीं था कि चीते कब व कहां से आएंगे। लेकिन मजेदार बात यह है कि इसी साल 22 जनवरी को पीटीआई ने यह खबर दे दी थी कि केन्या से इस साल 20 चीते लाए जा रहे हैं जो गांधी सागर वाइल्डलाइफ सेंक्चुअरी में छोड़े जाएंगे। उसी खबर में इस बात का भी जिक्र था कि गांधी सागर में ही एक अलग enclosure बनाया गया है जहां इन चीतों को खुले जंगल में छोड़ने से पहले दो हफ्ते रखा जाएगा। फिर बाद में 3 मार्च को प्रधानमंत्री की घोषणा में केन्या से आने वाले चीतों का जिक्र क्यों नहीं था?
मोदीजी को गुजरात से वैसे भी खास प्रेम है, आखिर उनका अपना राज्य जो है। पब्लिसिटी का कोई भी मौका वह हाथ से जाने नहीं देते हैं। और उसमें नेगेटिव खबरों की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी जाती। याद है न, जब तत्कालीन यूपीए सरकार 2009 में भारत में चीता लाने की योजना पर काम कर रही थी तब मोदी जी अचानक सौराष्ट्र में जूनागढ़ के सक्कड़बाग जू में मार्च 2009 में दो जोड़े चीते सिंगापुर से ले आए थे। उस समय उन्होंने बड़े जोरशोर से भारत में सत्तर सालों से विलुप्त चीतों को वापस लाने का सेहरा अपने सर बांधा था। क्या आपको पता है, उसके बाद उन चीतों का क्या हुआ? शायद नहीं, क्योंकि उसके बाद उनकी कोई खबर ही नहीं आई, या आने नहीं दी गई। मोदीजी गुजरात के CM से देश के PM बन गए, लेकिन चीतों के उन जोड़ों से सक्कड़बाग में कोई शावक पैदा नहीं हुआ, और फिर कुछ साल बाद धीमे-धीमे चारों चीते खामोशी व गुमनामी से दुनिया को अलविदा कह गए। ये चीते कब व कैसे मरे, इसके बारे में कोई खबरें आपको गूगल करने पर भी नहीं मिलेंगी। हालांकि 80 के दशक में कई भारतीय चिड़ियाघरों ने चीते मंगाये थे, लेकिन उनमें से कोई न तो बचे और न ही उनसे कोई ब्रीडिंग हो पाई।
गुजरात से मोदीजी को इतना प्रेम है कि वे गुजरात का कोई जानवर गुजरात से बाहर नहीं जाने देना चाहते और दुनियाभर के बाकी जानवरों को भी गुजरात में ही ले आना चाहते हैं। जब वह सक्कड़बाग जू के लिए चार चीते सिंगापुर से लाए तो उन्होंने बदले में तीन शेर दिये थे।
अब मोदी जी इन चीतों के बदले तो सिंगापुर को गिर के शेर देने को तैयार हो गए, लेकिन वह गिर के कुछ शेर मध्य प्रदेश भेजने को तैयार नहीं हुए थे, सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद। आखिर कुनो नेशनल पार्क को तो पहले गिर के शेरों की दूसरी आबादी की जगह के तौर पर ही चुना गया था। गुजरात के अलावा शेर कहीं और न रहें, इस दंभ में कुनो को चीता लाने के लिए चुन लिया गया और शेरों की दूसरी आबादी का मसला ठंडे बस्ते में डाल दिया गया।
लेकिन कुनो नेशनल पार्क का चीता प्रोजेक्ट भी कोई कामयाब प्रयोग रहा, ऐसा ताल ठोककर नहीं कहा जा सकता। प्रोजेक्ट लागू होने के करीब ढाई साल बाद भी लगातार दिक्कतें पेश आ रही हैं। बीमारियों और चीतों के खुद को कुनो के अनुकूल ढालने के अलावा इस समय सबसे बड़ी दिक्कत सामने आ रही है, कुनो के आसपास के गांवों की आबादी और मवेशियों से उनके टकराव की। शुरू में बहुत कहा गया था कि आसपास के गांवों के लोग हर तरह से साथ हैं, लेकिन अब एक के बाद एक जो घटनाएं सामने आ रही हैं, उनसे पता चल रहा है हालात गंभीर रुख अख्तियार कर रहे हैं।
पिछले महीने यानी 16 मार्च को कुनो नेशनल पार्क से सटे उमरीकला गांव में नौ साल के एक बच्चे पर कथित रूप से एक चीते ने हमला कर दिया था। उसकी मां ने बड़ी हिम्मत व दिलेरी के साथ अपने बच्चे की जान बचा ली। जानवर के चेहरे-मोहरे की पहचान से मां और बच्चे के पिता ने उसे एक चीता बताया था लेकिन वन्यजीव अधिकारी बार-बार कहते रहे कि वह एक तेंदुआ था। हालांकि घटना का कोई फोटो-वीडियो न होने से कुछ कहना मुश्किल था। फिर अभी इसी हफ्ते कुनो से सटे डुरेडी गांव में एक और आदिवासी व्यक्ति पर हमला हुआ। वन्य अधिकारी इसे भी तेंदुए का हमला मान रहे हैं। इसका भी कोई फोटो-वीडियो नहीं है। जब वन्य अधिकारियों से पूछा गया कि बगैर लकिसी सुबूत के वह कैसे कह सकते हैं कि यह तेंदुआ ही है, चीता नहीं, तो वन्य अधिकारी कहते हैं कि जब मैं कह रहा हूं तेंदुआ है तो तेंदुआ है।
लेकिन इन दो घटनाओं के बीच एक अन्य घटना ऐसी हुई जिसका वीडियो भी था और उसके बारे में यह नकारा नहीं जा सकता था कि वह चीता नहीं है। मार्च की 24 तारीख को कुनो से ही सटे एक और गांव बेहरधा में मादा चीता ज्वाला ने अपने चार शावकों के साथ एक बछड़े पर हमला बोल दिया था। उन्हें रोकने के लिए गांववालों ने चीते व उसके शावकों पर पत्थरों से हमला बोल दिया। चीते जंगल में भाग गए, उन्हें कोई गंभीर चोट नहीं आई, लेकिन इससे चीतों और निकट की आबादी के बीच में टकराव की शुरू से जाहिर की जा रही आशंका सही साबित हो गई। दुनियाभर में चीते आसपास की आबादी के मवेशियों पर हमले करते हैं। वे उनका सहज शिकार होते हैं। कुनो में चीते छोड़ने से पहले भी यही आशंका जाहिर की जा रही थी। नामीबिया से लाई गई ज्वाला और उसके 14 महीने के शावकों को इस 21 फरवरी को ही खुले जंगल में छोड़ा गया था। अब जबकि चीते खुले में अपना दायरा बढ़ा रहे हैं, इस तरह की घटनाएं बढ़ेंगी और चीता प्रोजेक्ट के लिए परेशानी खड़ी करेंगी।
बहरहाल, इन घटनाओं के बावजूद चीता प्रोजेक्ट के अधिकारी और चीते कुनो के जंगल में खुले छोड़ रहे हैं। 17 मार्च को दक्षिण अफ्रीका से लाई गई गामिनी और उसके 12 महीने के चार शावकों को भी कुनो के बिना बाड़ के खुले जंगलों में छोड़ दिया गया। देखना है कि इसका क्या असर होता है और आसपास के गांवों के लोग किस तरह का बरताव करते हैं।
चीता प्रोजेक्ट- चाहे वह सरकार का हो या वनतारा का, वह इज्जत व शोहरत का खेल ज्यादा लगता है, इसीलिए शायद उसमें बातें छिपाने की कवायद ज्यादा है, कुनो में भी और वनतारा के साथ गठबंधन के मामले में भी। कुनो के मामले में तो शुरू से गोपनीयता बरती जाती रही है, पता नहीं क्यों?
हम इस पर अपनी निगाह बनाए रखेंगे, आप भी रखिएगा।