July 27, 2025 2:22 pm
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हर चीज पर राजनीति करने से बाज नहीं आ रही BJP

भारतीय जनता पार्टी के “ऑपरेशन सिंदूर” अभियान को लेकर देश भर में बहस तेज हो गई है। जहां बीजेपी इसे महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बताने में जुटी है, वहीं महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी नेता इस अभियान को चुनावी लाभ के लिए गढ़ा गया एक गहरा पाखंड बता रहे हैं।

BJP के घर-घर सिंदूर ऑपरेशन का विरोध शुरू, कर्नल सोफिया क़ुरैशी को भुनाने का plan

भारतीय जनता पार्टी के “ऑपरेशन सिंदूर” अभियान को लेकर देश भर में बहस तेज हो गई है। जहां बीजेपी इसे महिला सशक्तिकरण का प्रतीक बताने में जुटी है, वहीं महिलाएं, सामाजिक कार्यकर्ता और विपक्षी नेता इस अभियान को चुनावी लाभ के लिए गढ़ा गया एक गहरा पाखंड बता रहे हैं।

जब ‘सिंदूर’ बना सियासी हथियार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बंगाल की धरती से “सिंदूर खेला” का हवाला देते हुए आतंकी हमलों पर चर्चा शुरू की, और अपने अभियान को “ऑपरेशन सिंदूर” का नाम दे डाला। इसने तुरंत कई स्तरों पर सवाल खड़े कर दिए — धार्मिक प्रतीकों के राजनीतिक दुरुपयोग से लेकर महिला सम्मान पर सत्ताधारी दल की दोहरी मानसिकता तक।

बंगाल की परंपरा में “सिंदूर खेला” एक सांस्कृतिक और धार्मिक उत्सव है, जो महिलाओं द्वारा दुर्गा पूजा के अंत में किया जाता है। इसे राजनीतिक प्रोपेगैंडा में बदलना बंगाल की संस्कृति और महिलाओं की एजेंसी — दोनों का अपमान है।

ममता बनर्जी का जवाब: “हर औरत की इज्जत होती है, लेकिन…”

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मोदी जी के सिंदूर वाले बयान पर करारा जवाब देते हुए कहा, “हर औरत की इज्जत होती है, लेकिन सिंदूर के नाम पर सियासत मत करो।” उन्होंने भाजपा के उन नेताओं की लिस्ट भी याद दिलाई जिन पर महिलाओं के खिलाफ अपराधों के गंभीर आरोप हैं — बृजभूषण शरण सिंह से लेकर राम रहीम तक।

सिंदूर का मतलब सिर्फ समर्पण नहीं — सवाल भी है

घरेलू महिलाओं की प्रतिक्रियाएं भी कम तीखी नहीं रहीं। “हम अपनी मांग में अपने पति के नाम का सिंदूर भरती हैं, किसी राजनीतिक नेता या पार्टी के नाम का नहीं” — यह बात कई जगहों से सुनाई दी। बीजेपी के पास क्या नैतिक अधिकार है सिंदूर बांटने का, जब पार्टी के भीतर महिला विरोधी मानसिकता और अपराधियों को संरक्षण देना आम बात हो गई है?

जब ‘सेना’ के नाम पर राजनीति

चौंकाने वाली बात यह है कि भाजपा अब ऑपरेशन सिंदूर में महिला आइकन के रूप में कर्नल सोफिया कुरैशी का चेहरा इस्तेमाल कर रही है — एक सर्विंग आर्मी अफसर का चेहरा, जिसे अभी तक किसी सार्वजनिक राजनीतिक मंच से जुड़ने की स्वीकृति नहीं दी गई है। क्या अब सेना को भी राजनीतिक अभियान में झोंक दिया जाएगा?

प्रिंट में यह खबर छपी है और अब राजनीतिक लाभ के लिए ऑपरेशन सिंदूर में बीजेपी कर्नल सोफिया कुरैशी का चेहरा इस्तेमाल कर रही है। और यह खबर सुनते हुए याद कीजिएगा — हमारे देश के प्रधानमंत्री जब पहुंचे थे, तो इन्हीं कर्नल सोफिया की बहन को वहाँ का जिला प्रशासन फोन करके कहता है, “मैडम, मोदी जी आ रहे हैं रोड शो में, आपको भी आना है, और मोदी जी पर फूल बरसाने हैं। हम आपके लिए जगह तय कर रहे हैं।”

यह होता है बदतमीजी भरा व्यवहार — बीजेपी और उसके नेतृत्व का।

तो अब आप देखिए, बीजेपी एक बार फिर कर्नल सोफिया को एक राजनीतिक चेहरे के रूप में इस्तेमाल करने जा रही है। बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा उन्हें अपने प्रतिनिधि के तौर पर सामने रखेगा, और इसकी शुरुआत की जा रही है देश की राजधानी दिल्ली से।

9 जून को दिल्ली के शाहीन बाग में, बीजेपी का अल्पसंख्यक मोर्चा कर्नल सोफिया कुरैशी के पोस्टर लगाकर ऑपरेशन सिंदूर पर वोट मांगेगा और यह कहेगा कि वे कर्नल सोफिया को राजनीतिक तौर पर आगे लाएंगे। जिस तरीके से यह योजना बनाई गई है, मुझे याद नहीं पड़ता — और मैं 1996-97 से पत्रकारिता में हूँ — कि किसी सर्विंग ऑफिसर को किसी राजनीतिक पार्टी ने इस तरह घिनौने ढंग से अपने राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया हो।

अब इस खबर को देखें:

शाहीन बाग में बीजेपी का माइनॉरिटी मोर्चा एक चौपाल करने जा रहा है, जिसमें वह कहेगा कि 11 साल की मोदी सरकार की उपलब्धियों को गिनवाने के लिए कर्नल सोफिया कुरैशी को आगे लाया जा रहा है। यह चौपाल एक राजनीतिक मंच होगा।

बिहार में भी इनकी योजना बेहद विस्तृत है।

यहाँ तक कहा जा रहा है कि सोफिया कुरैशी के ज़रिये बीजेपी यह संदेश देना चाहती है कि वह महिलाओं के बारे में क्या सोचती है।

और इसी रणनीति के तहत, घर-घर एक-एक चुटकी सिंदूर की कीमत वसूलने के लिए बीजेपी जा रही है।

यह एक शर्मनाक और भ्रामक प्रयास है।

“कश्मीर नहीं गए, बंगाल में सिंदूर बांटने चले आए”

22 अप्रैल को कश्मीर के पहलगाम में आतंकी हमला हुआ, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी आज तक वहां शोकाकुल परिवारों से मिलने नहीं गए। उल्टा, वह बंगाल में जाकर सिंदूर का राजनीतिक खेला कर रहे हैं। क्या यह संवेदनहीनता नहीं है?

और अंत में… जनता का तीखा सवाल

गली-मोहल्लों में अब महिलाएं सीधे-सीधे कह रही हैं:
“एक चुटकी सिंदूर की कीमत तुम क्या जानो, मोदी जी?”
जिस सिंदूर का उद्देश्य होता है प्रेम, समर्पण और साझेदारी का प्रतीक बनना, उसे वोट बैंक की राजनीति में बदल देना — यह लोकतंत्र और स्त्री-सम्मान दोनों के साथ अन्याय है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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