July 26, 2025 4:41 am
Home » रोज़नामा » मोदी राज में बांग्ला बोलने वाला मुसलमान होना भी गुनाह

मोदी राज में बांग्ला बोलने वाला मुसलमान होना भी गुनाह

मोदी सरकार में बांग्ला बोलने वाले भारतीय मुसलमानों को डिटेंशन सेंटर में डाला जा रहा है। पढ़ें कैसे मजदूरों को अवैध घुसपैठिया बता कर मानवाधिकारों का हनन हो रहा है।

देशवासियों से ही नफरत: बांग्ला बोलने वाले भारतीय नागरिकों को डिटेंशन सेंटर में डालने का खेल

भारत में भाषाई विविधता गर्व का विषय रही है। लेकिन मोदी सरकार में यही भाषाई पहचान अपराध बना दी गई है। गुरुग्राम, दिल्ली एनसीआर से लेकर गुजरात तक, बांग्ला बोलने वाले भारतीय मुसलमानों को अवैध घुसपैठिया बताकर डिटेंशन सेंटरों में कैद किया जा रहा है।

टाइम्स ऑफ इंडिया की ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि गुरुग्राम के सेक्टर-10 में बने होल्डिंग सेंटर में 74 मजदूरों को बंद किया गया। इनमें से 11 पश्चिम बंगाल और 63 असम के नागरिक हैं। इन मजदूरों के पास आधार कार्ड, वोटर आईडी और पासपोर्ट तक हैं, फिर भी उन्हें ‘बांग्ला बोलने’ की वजह से बांग्लादेशी घुसपैठिया बता दिया गया।

पुलिस और प्रशासन की अमानवीयता

24 वर्षीय करीमुल इस्लाम, जो पिछले 6 सालों से कार धुलाई का काम कर रहे थे, उन्हें भी जबरन घर भेजा गया। उनके परिवार ने फ्लाइट टिकट भेजकर गुरुग्राम से निकाला। कई मजदूरों के पास तीन-तीन पहचान पत्र थे – आधार, वोटर आईडी, पासपोर्ट – लेकिन मोदी राज में बांग्ला बोलना अपराध बन चुका है।

हाफिजुल नामक मजदूर का केस देखें। उनके पास वैध पासपोर्ट था, लेकिन पुलिस ने कहा – “पासपोर्ट भी फर्जी हो सकता है”, और उन्हें डिटेंशन सेंटर में डाल दिया गया।

बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का प्रोटेस्ट

ममता बनर्जी ने 20-21 जुलाई को कोलकाता में बड़ा विरोध प्रदर्शन किया। उनका कहना है –

“मोदी सरकार बंगालियों से नफरत करती है। वे बांग्ला बोलने वालों को इज्ज़त से मेहनत की रोटी खाने भी नहीं देना चाहती।”

सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 22 लाख बंगाली मजदूर देश भर में काम कर रहे हैं। अब इन सब पर डिटेंशन का खतरा मंडरा रहा है।

भाषा, धर्म, पहचान – हर चीज को नफरत का हथियार बनाया गया

यह पहली बार नहीं है। असम में NRC के नाम पर लाखों लोगों को संदिग्ध घोषित किया गया। मणिपुर में मैतेई और कुकी समाज को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर दिया गया। यही राजनीति अब भाषा के आधार पर की जा रही है।

असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा शर्मा हों या दिल्ली-हरियाणा के अधिकारी, सबकी राजनीति इस्लामोफोबिया और घृणा पर टिकी है। Times of India की रिपोर्ट के अनुसार 970 लोग, जो डिटेंशन सेंटरों में बंद हैं, वे पश्चिम बंगाल पुलिस द्वारा ‘भारत के नागरिक’ साबित हो चुके हैं, लेकिन अब भी कैद हैं।

यह कैसा विकास, जहां मजदूर डर के मारे अपने घर लौटने लगे?

गुरुग्राम की चमचमाती बिल्डिंगों और मल्टीनेशनल कंपनियों का सच यह है कि उन्हें बनाने वाले मजदूर आज भयभीत हैं। वे अपने गांव लौट रहे हैं, क्योंकि उनके लिए काम से बड़ा सवाल यह बन गया है कि – “क्या मैं भारत का नागरिक हूं?”

यह सवाल हम सबके लिए है। क्या आधार कार्ड और वोटर आईडी के बाद भी नागरिकता साबित करनी होगी? क्या केवल मुसलमान होना और बांग्ला बोलना ही अब अपराध है?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

Read more
View all posts

ताजा खबर