उपराष्ट्रपति की विदाई की जितनी भी वजहें रही हों, उनमें शारीरिक सेहत तो कतई नहीं थी
“डंडा चला और आवाज के साथ चला।”
भारतीय राजनीति में यह डंडा किसका था और किस पर चला? इस बार निशाने पर थे उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, जो अचानक ही अपने पद से इस्तीफा देकर बाहर हो गए। कारण बताया गया ‘सेहत’। लेकिन बेबाक भाषा पर हम इस आधे सच से संतुष्ट नहीं होते।
क्या वाकई वजह थी सेहत?
धनखड़ जी ने 10 दिन पहले JNU के कार्यक्रम में कहा था – “मैं बिलकुल फिट हूं, 2024 तक टर्म पूरा करूंगा।” फिर अचानक इस्तीफा क्यों? सरकारी डॉक्टरों के नाम बताए जाते हैं – नरेंद्र मोदी और अमित शाह। क्योंकि इस इस्तीफे की असली वजह सत्ता के भीतर का वह संघर्ष है, जो पर्दे के पीछे खौल रहा था।
लक्ष्मण रेखा क्रॉस करने की सज़ा
अडानी के चैनल ने इसे ‘मास्टरस्ट्रोक’ बताया। कहा – धनखड़ ने लक्ष्मण रेखा पार की थी। लेकिन यह लक्ष्मण रेखा क्या थी? दरअसल, दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस वर्मा के खिलाफ इम्पीचमेंट प्रक्रिया को लेकर धनखड़ जी बेहद आक्रामक थे। राजसभा में उन्होंने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की, जबकि यह मोदी-अमित शाह का खेल था। सत्ता के भीतर दो पावर सेंटर बनते दिखे और यही उनकी बर्बादी का कारण बना।
धनखड़: गवर्नर से लेकर उपराष्ट्रपति तक
- बंगाल के गवर्नर रहते ममता बनर्जी से लगातार टकराव
- उपराष्ट्रपति बनकर संसद में विपक्ष के माइक बंद करवाना
- जया बच्चन को सार्वजनिक रूप से अपमानित करना और उनका “माइंड योर लैंग्वेज” वाला जवाब
- सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी – सेक्युलरिज्म और समाजवाद को ‘नासूर’ बताना और कहना कि यह सनातन भावना के खिलाफ है
इतनी खुली चमचागिरी के बावजूद, मोदी जी के दरबार से बेआबरू होकर ही बाहर हुए। यही तो मोदी मॉडल है – चमचागिरी भी लिमिट में करो, वरना डंडा चलेगा।
पार्टी विद डिफरेंस या पार्टी विद डंडा?
धनखड़ का इस्तीफा दिखाता है कि बीजेपी में ‘वन मैन शो’ है। आडवाणी से लेकर सुषमा स्वराज और अब धनखड़ तक – सबको रास्ता दिखा दिया गया। यह इस्तीफा मोदी की सत्ता को यह संदेश देता है:
“कोई भी पद, कोई भी व्यक्ति मोदी से बड़ा नहीं।”
राजनीतिक संदेश क्या है?
- राज्यपालों और अन्य संवैधानिक पदों को चेतावनी – लक्ष्मण रेखा मत पार करो।
- बीजेपी में अंदरूनी कलह का संकेत – RSS भी अध्यक्ष चुनने में विफल।
- चुनावी रणनीति का हिस्सा – कमजोर दिखने वाले मोहरे हटाए जाएंगे।
- विपक्ष को संदेश – संसद में हावी होने वाले उपराष्ट्रपति भी नहीं बचेंगे।
RSS-BJP के रिश्ते पर भी सवाल
धनखड़ का इस्तीफा उस वक्त हुआ जब बीजेपी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष तय नहीं कर पा रही। RSS भी चाहकर निर्णय नहीं करा पाया क्योंकि मोदी ही अंतिम फैसला लेंगे। यही बताता है कि सत्ता RSS के हाथ से निकलकर पूरी तरह मोदी-अमित शाह के कब्ज़े में है।
अंत में: टी राजा सिंह का उदाहरण
तेलंगाना में टी राजा सिंह, जो खुलेआम communal भाषण देता था, उसे भी पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। बीजेपी में अब ‘लाइन और लेंथ’ सिर्फ मोदी तय करेंगे। धनखड़ का डंडा भी इसी लाइन और लेंथ का उदाहरण है।
Conclusion (निष्कर्ष)
धनखड़ का जाना बताता है –
- पद बड़ा नहीं, मोदी बड़ा है।
- सत्ता का डंडा हमेशा तैयार है।
- चमचागिरी की भी सीमा होती है।
“बेबाक भाषा पर हम यही कहेंगे –
मोदी राज में कोई भी कुरसी स्थाई नहीं,
डंडा जब चलेगा, आवाज जरूर आएगी।”