July 25, 2025 4:09 am
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189 मौतों और 12 निर्दोषों के जेल में 18 सालों का गुनहगार कौन

2006 मुंबई ट्रेन धमाकों में 189 लोग मारे गए थे, 12 मुस्लिम युवक 18 साल जेल में रहे। अब हाईकोर्ट ने उन्हें बेगुनाह करार दिया। असली गुनहगार कौन है?

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट 2006 में हाई कोर्ट के फैसले ने सिस्टम पर खड़े किए कई बड़े सवाल

2006 के मुंबई ट्रेन ब्लास्ट में 189 लोगों की मौत हुई थी। देश दहशत से कांप गया था। लेकिन 2025 में, बॉम्बे हाईकोर्ट ने इसी केस में पकड़े गए 12 आरोपियों को बेगुनाह करार दिया है। इन 12 मुस्लिम युवकों ने अपने जीवन के 18 साल जेल में बिताए, जब तक उनकी बेगुनाही साबित नहीं हो गई।

यह कोई फिल्म की कहानी नहीं, भारत के न्याय तंत्र की सच्चाई है – जहां बम धमाके असली होते हैं, लाशें भी असली होती हैं, लेकिन ‘दोषी’ अक्सर गलत पकड़ लिए जाते हैं। कोर्ट ने भी साफ कहा – “गलत लोगों को पकड़ना असली गुनहगारों को बचाना है।”

कौन थे ये 12 बेगुनाह?

इनमें बिहार के मधुबनी से कमाल अंसारी भी थे। उनका बेटा बताता है कि उसके पिता कभी मुंबई नहीं गए, उस समय नेपाल में मजदूरी कर रहे थे। लेकिन पुलिस ने उन पर पाकिस्तानियों से हथियार ट्रेनिंग लेने और धमाका करने का आरोप लगा दिया। कमल अंसारी 2021 में जेल में ही कोविड से मर गए। कोई पेरोल, कोई इंसाफ, कोई अंतिम विदाई नहीं।

बाकियों में नावेद हुसैन, आसिफ खान, मुहम्मद फैसल, एमटीआर सिद्दी, तनवीर अनसारी, शफीक शेख, मुजम्मिल अताउर रहमान शेख, सुहेल महमूद शेख और समीर अहमद शामिल थे। इन पर टॉर्चर की ऐसी दास्तां सामने आई जिसमें पैरों को 180 डिग्री तक फैलाकर पीटा गया, छाती पर कॉकरोच दौड़ाए गए और अंडरवियर में चूहे डाले गए, ताकि ये जुर्म कबूल कर लें।

18 साल बाद सवाल वही – असली दोषी कौन?

बॉम्बे हाईकोर्ट ने साफ कहा – “गलत लोगों को पकड़ने से समाज को झूठा भरोसा मिलता है कि न्याय हुआ, जबकि असली खतरा अब भी बाहर है।” लेकिन न महाराष्ट्र पुलिस पर कोई कार्रवाई हुई, न उन्हें फंसाने वालों पर। 189 मारे गए लोगों के परिवार न्याय के इंतजार में हैं, तो ये 12 परिवार अपने बर्बाद जीवन की भरपाई के लिए।

पुलिस, सिस्टम और राजनीति – सब कटघरे में

यह केस उस पैटर्न का हिस्सा है जिसमें मुसलमानों को आतंक का पर्याय मानकर फंसाया जाता है। 2014 के बाद यह प्रवृत्ति और मजबूत हुई। लेकिन यह मामला 2006 का था, जब कांग्रेस की सरकार थी। उसी कांग्रेस की पुलिस ने बिना सबूत इन 12 लोगों को फंसा दिया। कोर्ट ने पाया कि गवाहियां copy-paste थीं, और असली गुनहगारों को पकड़ने की बजाय ‘किसी भी मुसलमान को पकड़ लेने’ का mindset था।

“पार्टी विद डिफरेंस” की चुप्पी और भक्तों की नफरत

फैसले के बाद भाजपा नेताओं ने सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही, लेकिन यह नहीं पूछा कि “असली दोषी कौन हैं?” भक्त ट्रोल आर्मी इस फैसले को ‘देशद्रोह’ बता रही है। उन्हें 18 साल जेल में सड़ने वाले निर्दोष नजर नहीं आते। उन्हें सिर्फ वही दिखता है, जो नफरत के एजेंडे में फिट बैठता है।

क्या यह न्याय है?

इस देश में Jessica Lal के लिए सबने कहा – No one kills Jessica. उसी तरह, 189 लोगों की हत्या किसने की, कोई नहीं पूछ रहा। पुलिस से पूछना चाहिए – “तुमने असली गुनहगारों को क्यों नहीं पकड़ा?” सिस्टम से पूछना चाहिए – “इन 12 की जिंदगी कौन लौटाएगा?”

निष्कर्ष

मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस बताता है – भारत का न्याय तंत्र अभी भी धर्म, जाति, सत्ता और नफरत की दीवारों में कैद है। अदालत ने भले ही इन 12 को निर्दोष कहा, लेकिन न्याय सिर्फ बेगुनाही साबित होने से नहीं होता – न्याय होता है असली दोषियों के सजा पाने से।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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