July 26, 2025 4:45 pm
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गाज़ा में भूख से मौतों पर घड़ियाली आंसू बहाने से कोई फर्क नहीं पड़ता

गाज़ा में भूख से मरते बच्चों की तस्वीरें दुनिया देख रही है, लेकिन कोई आवाज़ नहीं उठा रहा। इस्राइल के starvation genocide पर भारत समेत पूरी दुनिया क्यों खामोश है? पढ़ें बेबाक भाषा की ग्राउंड रिपोर्ट।

इज़रायल के स्टार्वेशन जेनोसाइड पर दुनिया की चुप्पी क्यों?

गाज़ा, फिलिस्तीन, भूख, और मौतें…

इन शब्दों के अलावा फिलहाल और कोई शब्द नहीं है जो गाज़ा की भयावह स्थिति को बयान कर सके। भूख से मरते बच्चे, कंकाल बनते इंसान, तड़पती मांएं – यह कत्लेआम है, और इसे लाइव देखा जा रहा है। मगर पूरी दुनिया खामोश है।

यह कत्लेआम कौन कर रहा है?

इसे कर रहा है इस्राइल – और उसकी पीठ पर खड़े हैं अमेरिका और यूरोप के सबसे ताकतवर देश। गाज़ा में मार्च 2025 से इस्राइल ने खाने, दवाइयों और ईंधन की आपूर्ति रोक दी। इसका नतीजा है कि अब तक 80 से ज्यादा बच्चे भूख से मर चुके हैं

इनकी तस्वीरें इतनी भयावह हैं कि यूट्यूब भी उन्हें सेंसर कर दे। मगर इस्राइल के लिए इन्हें अंजाम देना कोई मुश्किल नहीं।

भारत की शर्मनाक भूमिका

भारत का फिलिस्तीन से ऐतिहासिक रिश्ता रहा है। लेकिन आज वही भारत इस्राइल के साथ रक्षा सौदे कर रहा है। हाल ही में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में कहा कि गाज़ा में सीज़फायर होना चाहिए, लेकिन कुछ दिन पहले जब इस्राइल के खिलाफ जेनोसाइड का प्रस्ताव लाया गया था, भारत ने उस पर दस्तखत तक नहीं किए।

यह कैसी नीति है?

जिस देश की राजधानी दिल्ली में फिलिस्तीन के समर्थन में प्रदर्शन करने पर पुलिस हमला कर देती है, वहीं संयुक्त राष्ट्र में ‘फिलिस्तीन के भाइयों और बहनों के साथ’ होने का दावा किया जा रहा है।

भूख से कत्ल

WHO से लेकर BBC तक हर रिपोर्ट कह रही है कि गाज़ा में मानवीय आपदा है। डॉक्टर इलाज नहीं कर पा रहे, पत्रकार कमजोर हो चुके हैं, बच्चों की हड्डियां निकल रही हैं। यह हिटलर के गैस चैंबर जैसा ही जेनोसाइड है। फर्क बस इतना है कि इस बार लाइव स्ट्रीमिंग हो रही है।

आखिर कब रुकेगा यह जेनोसाइड?

अंतरराष्ट्रीय अदालत ने इसे ‘वार क्राइम’ माना लेकिन अमेरिका और यूरोप ने चुप्पी साध ली। फ्रांसिस्का एल्बिनी की बात याद रखिए – “तुम्हें नींद कैसे आती है जब बच्चे भूख से तड़प रहे हैं?”

भारत की जनता को भी सवाल पूछना चाहिए।

क्या हम भी इस कत्लेआम में शामिल हैं, क्योंकि हमारी सरकार उसी के साथ खड़ी है?

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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