July 27, 2025 7:38 pm
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जब पाठशाला बन गई मौतशाला

राजस्थान के झालावाड़ में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से 7 बच्चों की मौत। हादसा नहीं, सिस्टम की हत्या। पढ़िए बेबाक रिपोर्ट।

BJP के राजस्थान में ग़रीब बच्चों की जान सस्ती क्यों? ज़िम्मेदार कौन- मंत्री, MP, MLA?

“जब स्कूल बन जाए मौत का घर, तो समझिए सिस्टम बच्चों का नहीं, सिर्फ सत्ता का है।”

राजस्थान के झालावाड़ ज़िले में शुक्रवार को एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात मासूम बच्चों की मौत हो गई और दर्जनों बच्चे गंभीर रूप से घायल हो गए। यह हादसा राजस्थान की राजनीति, प्रशासनिक लापरवाही और जाति-वर्ग के भेदभाव की एक क्रूर मिसाल है।

चार साल से गूंज रही थी चेतावनी, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं था

पिपलोदी गांव के मनोहर थाना ब्लॉक में स्थित इस स्कूल के भवन की हालत पिछले चार वर्षों से जर्जर थी। गांववाले लगातार प्रशासन से गुहार लगा रहे थे कि स्कूल की मरम्मत कराई जाए, लेकिन उनकी आवाज़ सुनी नहीं गई। मरम्मत के लिए कहा गया — “पैसा लाओ, तभी कुछ होगा।”

गांव की दलित और आदिवासी आबादी के बच्चे इस स्कूल में पढ़ते थे। यही कारण है कि राज्य की राजनीति की तथाकथित महारानी वसुंधरा राजे, उनके सांसद पुत्र दुश्यंत और खुद राजस्थान सरकार की भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली सरकार तक इस स्कूल की बदहाली नहीं पहुंची।

हादसा, या सुनियोजित हत्या?

जिस वक्त हादसा हुआ, स्कूल के कमरे में 35 बच्चे मौजूद थे। अचानक छत भरभराकर गिर गई। 7 की मौत मौके पर या अस्पताल में हो गई, 9 बच्चे गंभीर रूप से घायल हैं।

मरने वालों में ज़्यादातर भील, लोधा, रैदास जातियों के बच्चे थे:

  • वर्षा, पुत्री मांगीलाल (भील)
  • कार्तिक, पुत्र हरचंद (लोडहा)
  • हरीश, पुत्र बाबूलाल (भील)
  • मीना, पुत्री छोटूलाल (रैदास)
  • कुंदन, पुत्र बीरम (भील)
  • कनहैया, पुत्र छोटूलाल (भील)

ये वो नाम हैं जिनकी जान ली गई, न सिर्फ जर्जर भवन ने, बल्कि उस सरकार ने जो सड़क तो बना सकती है VIP विज़िट के लिए, पर स्कूल नहीं मरम्मत करा सकती।

सवाल सत्ता से: जवाब कौन देगा?

  • वसुंधरा राजे पांच बार झालावाड़ से विधायक रही हैं, फिर भी स्कूल को एक ईंट तक नहीं मिल सकी।
  • उनके बेटे दुश्यंत सांसद हैं, लेकिन MP फंड से स्कूल का एक कमरा नहीं बना।
  • मुख्य मंत्री भजनलाल शर्मा के निर्देश के बाद सड़क तो चंद घंटों में बन गई, लेकिन स्कूल अब भी मलबा है।

क्या यह घटना सिर्फ एक “दुर्घटना” थी? या फिर एक सिस्टम की सुनियोजित लापरवाही?

“बाहर नहीं जाओगे!” – बच्ची का बयान रुला देगा

हादसे में बची एक बच्ची ने बताया:

“हमने टीचर से कहा कि छत से कंकर गिर रहे हैं, लेकिन उन्होंने कहा चुपचाप बैठो… और थोड़ी ही देर में छत गिर गई।”

बच्चों से स्कूल की सफाई तक करवाई जाती थी, उन्हें धमकाया जाता था, और खाना भी कभी-कभी ही ठीक से मिलता था।

यह कैसा ‘विकसित भारत’?

सरकारी आंकड़े खुद बताते हैं कि देश के हर पांच में से एक सरकारी स्कूल जर्जर हालत में है। लेकिन VIP नेताओं के स्वागत में सड़कें चमचमाने लगती हैं। यही भारत की ‘विकास गाथा’ है, जहां स्कूल गिरते हैं लेकिन जवाबदेही शून्य होती है।

कांग्रेस का बयान: “यह हत्या है, दुर्घटना नहीं”

कांग्रेस ने स्पष्ट कहा:

“यह केवल लापरवाही नहीं, हत्या है। सरकार की उदासीनता ने मासूम बच्चों की जान ले ली।”


निष्कर्ष: जवाबदेही तय हो, राजनीति नहीं छूटनी चाहिए

झालावाड़ की यह घटना केवल राजस्थान की नहीं, पूरे भारत की राजनीतिक व्यवस्था का आइना है — जहां दलित और आदिवासी बच्चे सत्ता की प्राथमिकता में सबसे नीचे हैं।

सरकार अगर सड़क बना सकती है, तो स्कूल भी बना सकती है। पर अगर स्कूल नहीं बना, और बच्चे मारे गए, तो यह सिर्फ ‘दुर्घटना’ नहीं — यह सिस्टम द्वारा की गई हत्या है।

भाषा सिंह

1971 में दिल्ली में जन्मी, शिक्षा लखनऊ में प्राप्त की। 1996 से पत्रकारिता में सक्रिय हैं।
'अमर उजाला', 'नवभारत टाइम्स', 'आउटलुक', 'नई दुनिया', 'नेशनल हेराल्ड', 'न्यूज़क्लिक' जैसे
प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों

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